पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४४९

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आल्हखण्ड। ४४८ झीलम बावतर दोऊ पहिरे रंजित मोहवे का सरदार ५४ ताहर बेटा पृथीराज का सोऊ आयगयो त्यहिबार ।। गरुई हाँकन ते ललकारा ठाकुर मोहवे के सरदार ५५ कीन ढिठाई तुम अब लग है अब हम साँच देत बतलाय ।। डोला देके चन्द्रावलि का अवहीं कूच देउ करवाय ५६ नहीं तो आशा तजु जीवनकी यमपुर देत आज दिखलाय ।। दीखि लड़ाई नहि, ताहर की नाहर खबरदार लैजाय ५७ इतना कहिके ताहर ठाकुर रंजित पास पहूँचा जाय ॥ रंजित मारी तलवारी को ताहर लैंगा चोट वचाय ५८ ताहर मारा तलवारी का रंजित लीन दाल पर वार ।। रुचि सिरोही रंजित मारी ताहर रोकिलीन त्यहिवार ५६ जैसे रसरी गगरी लकै पानी खैचि रही पनिहार ।। तैसे रंजित ताहर दोऊ रणमाँ भली मचाई रार ६० सवैया॥ मार अपार भई त्यहि वार सो यार सँभार रह्यो कछु नाहीं। जूझिगये बहु पैदल स्वार तजे हथियार का रण नाहीं।। जातभये सुरलोक तबै औ जवै तजि प्राण दिये रणमाहीं। कीरति लोक रहै ललिते परलोक बनै क्षण एकहि माहीं ६१ दोऊ प्यारे रघुनन्दन के बन्दन कर हृदय कार ।। दोऊ मारें तलवारी सों दोऊ लेय दालपर वार ६२ रंजित चूके तलवारी ते कटिक मूड़ गिरा त्यहिबार ।। पूत सुप्ता माहिलवाला आला उरई का सरदार ६३ सम्मुख ताहर के भावा सो सुर्खा घोड़ेपर असवार ।।