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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५

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आल्हखण्ड। ४०

इतनी कहिकै करिया चलिभो फौजन फेरि पहूँचा आय॥
तुरत नगड़ची को ललकार्यो मारू डंका देय बजाय २१
बजा नगाड़ा तब माड़ो में क्षत्रिन धरा रकाबन पायँ॥
आपो चढ़िकै फिरि घोड़ापर मनमें रामचन्द्र को ध्याय २२
कूच कराय दयो माड़ो सों पहुॅचो जाजमऊ में जाय॥
राम्बू गड़िगे तहँ करिया के चकरन बिस्तर दीन बिछाय २३
उतर्यो करिया तब तम्बू में मनमें सुमिरि शारदा माय॥
लैकै धोती रेशमवाली गंगा निकट पहुँचा जाय २४
हनवन करिकै श्री गंगा में आसन तहाँ लीन बिछवाय॥
संध्या बन्दन करि प्रातः की बिप्रन तुरत लीन बुलवाय २५
दान दक्षिणा दै बिप्रन को तम्बू फेरि पहूँचा आय॥
पहिरिके कपड़ा अलबेला सो मेला फेरि पहूॅचा जाय २६
जाय दुकानन माँ देखतभा कतहुँ न मिलानीकत्यहिहार॥
तबलों माहिल उरई वाला तासों ह्वैगै राम जुहार २७
माहिल बोल्यो तब करियाते ओ जम्बै के राजकुमार॥
काह खरीदन को आयो है जो तुम घूमो सकल बजार २८
सनिकै बातैं ये माहिल की करिया बोला बचन उदार॥
हार लखौटा नीको ढूंढ़ैं सो नहिं पावा कतों बजार २९
बहिनि बिजैसिनि म्वरिमांगाहै ताते खोज करों अधिकाय॥
तुम्हरो जानों जो कतहूँ हो मोको बेगि देव बतलाय ३०
सुनिकै बातैं ये करिया की माहिल कहा वचन मुसुकाय॥
हार नौलखा है मोहवे माँ तुरतै चला तहाँको जाय ३१
बहिनि हमारी मल्हना जानों औ बहनोई रजा परिमाल॥
क्वऊ लड़ेया तिन घर नाही मानों सत्य सत्य सब हाल ३२