पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५०

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कीरतिसागरकामैदान । ४४६ श्रो ललकारा फिरि ताहर को सँभरो दिल्ली के सरदार ६४ इतना सुनिकै ताहर बोले अभई बार वार धिक्कार। लिल्लीघोड़ी के चढ़वैया माहिल बाप तुम्हारे यार ६५ तिनके लरिका तुम तलवरिहा करते भयो कही सरदार। इतना सुनिकै अभई ठाकुर अपनी बैंचि लीन तलवार ६६ ताहर अभई दोउ बीरन का परिगा समर बरोबरि आय॥ रञ्जित जूझे हैं संगर में धावन खबरि सुनाई जाय ६७ खबरि पायक मल्हना रानी तुरतै गिरी तहाँ कुम्हिलाय ।। बारह रानी परिमालिक की गिरि गिरि परे पछाराखाय ६८ रञ्जित रञ्जित के गुहरावें छाती धड़कि धड़किरहिजाय ।। मारे डरके पिंडुरी का थर थर देह रही थर्राय ६६ कोगति बरणै चन्द्रावलि के भलिकैविपति कही ना जाय ।। सावधान भै मल्हनारानी तुस्तै दीन्ह्यो दूत पठाय ७० बोलन लागी चन्द्रावलि ते मनमा बार बार पछिताय ।। खप्पर भरिंगा धिक् बेटी त्वहिं सागर पूत गँवावा आय ७१ इतना कहिके मल्हना रानी तुरते गिरी पछाराखाय ।। गा हरिकारा हाँ मोहवे मा ब्री. खबरि जनाई जाय ७२ रञ्जित जूझे हैं सागर पर तिनकी लाश लेहु उठवाय ।। इतना सुनिकै ब्रह्मा ठाकुर डंका तुरत दीन बजवाय ७३ सजि हरनागर तहँ गढ़ो थो तापर कूदि भये असवार ।। पाँचलाख लो फौजे. लैकै सागर चलन हेतु तय्यार ७४ दाढ़ी करखा बोलन लागे विपन कीन बेद उच्चार ॥ रणकी मौहरि बाजन लागी रपका होनलाग व्यवहार ७५ 'झीलमवखतरपहिरिसिपाहिन हाथमे लई दाल तलवार ॥