पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५२

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कीरतिसागरकामेदान । ४५१ "२७ मर्दनि सर्दनि दोऊ जूझे अब तुम चढ़ो पिथौराराय ८५ सुनिकै बातें ये माहिल की हाथी तुरत लीन सजवाय ॥ सुमिरि भवानीसुत गणेश को पहुँचा समरभूमिमा आय ८६ चौड़ा बकशी का बुलवावा औ यह हुकुम दीन फरमाय ।। जितने डोलाहैं सागर में सबका अवै लेउ लुटवाय ६० पाछे ,मल्हना चन्द्रावलि का दिल्ली शहर देउ पठवाय॥ हुकुम पायकै पृथीराज का तहँपर अटा चौंडिया धाय ६१ लाखनि बोले ह्याँ ऊदन ते नाहर सुनो बनाफरराय ॥ कीरतिसागर मदनताल पर चलिये बेगि लहुस्खाभाय ६२ मुनिकै बातें लखराना की डका तुरत दीन बजवाय ॥ सजे सिपाही कनउज वाले मनमा फूलमतीको ध्याय ६३ सुमिरि भवानी महरानी को दानी तीनिलोक की माय ॥ फूलमती पद बन्दन कैक हाथी चढ़ा कनौजीराय ६४ चदा वेंदुला का चढ़वैया मैया शारद चरण मनाय ॥ ध्याय भवानीसुत गणेश को देवा चढ़ा मनोहर जाय ६५ मीराताल्हन बनरस वाले सोऊ बेगि भये असवार । योगिहा बाना मर्दाना सब ठाकुर भये समर तय्यार ६६ धुरपद . सरंगीत तिल्लाना गावन लागे मेघमलार॥ घोर घटा हैं कहूँ सावन के आवन प्रीतम केरि वहार ६७ शोचें विरहिनी घर आँगन में जब कहुँ परै पर्व त्यवहार ॥ प्रीतम होते जो सावन में तो दुख दावन जात हमार ६८ को गति वर्षे त्यहि समया के ऊदन गावं मेघमलार.॥ पावन वर्षा है सावन के जङ्गल देखि पर हरियार ६ फसल आँवकी नर वागन में जंगल देखि परें गुलजार ॥