पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५६

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कीरतिसागरकामेदान। ४५५ ३१ अब हम जावत त्यहि दलमा ज्यहिमालड़े चंदेलाराय १३६ जितने योगी हैं सागर में सबियाँ बेगि होयँ तय्यार ॥ लाखनि आये हैं मुर्चा ते तिनकेसाथ चलें सरदार १३७ इतना सुनिकै सबियाँ योगी तुरत होन लागि तय्यार ॥ हिरसिंह बिरसिंह विरियावाले चन्दन दतिया के सरदार १३८ चिंता राजा रुसनीवाला औ पतउँज के मदनगुपाल । ॥ पूरनराजा पूरा वाला जगमनिजिन्सीकानरपाल१३६ बारह कुँवर बनौधा वाले चारो गाँजर के सरदार ।। चिन्ता दूसर गोरखपुर के रूपनि मधुकरसिंह उदार १४० ये सब योगी सजि सागर में रणका चलन हेतु तय्यार ॥ मीराताल्हन बनरस वाले सिरगा घोड़ेपर असवार १४१ सुमिरि भवानी फूलमती को हाथी चढ़ा कनौजीराय ।। सुमिरि शारदा मैहरवाली आगे चला बनाफरराय १४२ उतसों सेना पृथीराज की सोऊ गई बरोवरि आय ॥ चली सिरोही फिरि सागरपर अद्भुतसमरकहा ना जाय ९४३ ना मुँह फेरै कनउज वाले ना ई दिल्ली के चौहान ।। कीरतिसागर मदनताल पर क्षत्रिन कीन खुब मैदान १४४ कटि कटि कल्ला गिरें बछेड़ा चेहरा गिरें सिपाहिन केर॥ बिना सूंढ़ि के हाथी घूमें मारे एक एकको हेर १४५ आदिभयङ्कर का चढ़वैया यहु महराज पिथौराराय ।। भूरी हथिनी पर लखराना सम्मुखगयो तड़ाकाआय१४६ ब्रह्मा ताहर का मुर्चा है दोऊ खूब करें तलवार ।। चौड़ा ऊदन का रण सोहै. धाँधू बनरस का सरदार १४७ सवापदर लों चली सिरोही नदिया बही रक्त की धार ।।