पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५९

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३४ आल्ह खण्ड । ४५८ सवैया॥ मीन मिले जलको विठुरे जिमि पङ्कज भानु यथा सुखदाई। त्योंहि मिली परिमाल कि नारि सो डारितहाँ विपदासमुदाई। नैनन मोचत बारि निहारि सो नारिनकी तहँ लागि अथाई। कौन बखान करै ललिते सुख सम्पति आय तहाँ सब छाई २७२ मिलामेंट करि सब ऊदन ते सागर सूजी रहीं सिराय ।। बीर भुगतै औ धाँधू को पठयो फेरि पिथौराराय १७३ लै दल बादल दोऊ आये दोनी लेन हेतु ततकाल । लाखनि बोले तब ऊदन ते सुनियेदेशराजके लाल १७४ लैंगे दोनी जो दिल्ली के हमरो मान भंग है जाय ।। बट्टा लागी रजपूती माँ औसव क्षत्री धर्मनशाय१७५ बातें सुनिकै लखराना की ऊदन अटे तडाका धाय ॥ धाँधू बोले तव ऊदन ते योगीसाँच देय बतलाय १७६ निकट दुनैया के जायो ना नहिं शिर देव अवै गिराय॥ बात न मानी कछु धाँधू की ऊदन दोनी लीनउठाय १७७ देखि तमाशा यहु ऊदन का धाँधू बैंचि लीन तलवार॥ कीरतिसागर की सिढ़ियन मा लागीहोन भड़ाभड़ मार १७८ झुके सिपाही दिल्लीवाले दोऊ हाथ करें तलवार ।। को गतिवरणै तहँ ऊदन के ठाकुर वेंदुलका असवार १७६ फिरि फिरि मारै औ ललकारै यहु रणबाधु- बनाफरराय ।। हटिगा मुर्चा तहँ धाँधूका कोउ रजपूत न रोक पायँ १८० धीर भुगता कोपित हैकै अपनो हाथी दीन बढ़ाय॥ मीरासय्यद बनरस वाले सम्मुख गये तड़ाकाधाय १८१