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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४५९

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आल्हखण्ड। ४५८

सवैया॥

मीन मिलै जलको बिछुरे जिमि पङ्कज भानु यथा सुखदाई।
त्योंहि मिली परिमाल कि नारि सो डारितहाँ विपदासमुदाई॥
नैनन मोचत बारि निहारि सो नारिनकी तहँ लागि अथाई।
कौन बखान करै ललिते सुख सम्पति आय तहाँ सब छाई १७२


मिलाभेंट करि सब ऊदन ते सागर सूजी रहीं सिराय॥
बीर भुगंतै औ धाँधू को पठयो फेरि पिथौराराय १७३
लै दल बादल दोऊ आये दोनी लेन हेतु ततकाल॥
लाखनि बोले तब ऊदन ते सुनियेदेशराजके लाल १७४
लैगे दोनी जो दिल्ली के हमरो मान भंग ह्वै जाय॥
बट्टा लागी रजपूती माँ औसव क्षत्री धर्मनशाय १७५
बातैं सुनिकै लखराना की ऊदन अटे तड़ाका धाय॥
धाँधू बोले तब ऊदन ते योगीसाँच देयँ बतलाय १७६
निकट दुनैया के जायो ना नहिं शिर देवैं अवै गिराय॥
बात न मानी कछु धाँधू की ऊदन दोनी लीनउठाय १७७
देखि तमाशा यहु ऊदन का धाॅधू खैंचि लीन तलवार॥
कीरतिसागर की सिढ़ियन मा लागीहोन भड़ाभड़ मार १७८
झुके सिपाही दिल्लीवाले दोऊ हाथ करैं तलवार॥
को गतिबरणै तहँ ऊदन के ठाकुर बेंदुलका असवार १७९
फिरि फिरि मारै औ ललकारै यहु रणबाघु बनाफरराय॥
हटिगा मुर्चा तहँ धाँधूका कोउ रजपूत न रोंकै पायँ १८०
धीर भुगता कोपित ह्वैकै अपनो हाथी दीन बढ़ाय॥
मीरासय्यद बनरस वाले सम्मुख गये तड़ाकाधाय १८१