पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६०

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कीरतिसागरकामैदान । ४५६ ३५ ऍड़ लगावा जब घोड़े के हौदा उपर पहूँचाजाय । गुर्ज चलावा बीरभुगन्ता सय्यद लैगे चोट बचाय १८२ ढाल कि औझड़ सय्यद मारी नीचे गिरा महाउत आय ॥ तहिले धाँधू तहँ आवत भा औ सय्यदकोदीनहाय १८३ मारन लाग्यो रजपूतनका धाँधूभाय पिथौरा क्यार ।। मारे मारे तलवारिन के नदिया वही रक्तकी धार १८४ ना मुँह फेरें कनउजवाले ना ई दिल्ली के सरदार ॥ मूड़न केरे मुड़चौरामे औ रुण्डनके लगेपहार १८५ शूर सिपाही दुहुँ तरफाके दूनों हाथकरें तलवार ॥ कायर भागे समर भूमिते अपने डारि डारि हथियार १८६ तहिले माहिल गे तम्बूमें औ पिरथी ते कहाहवाल ॥ जीति न होई महराजाअब आयो देशराज को लाल १८७ ऊदन जावें जब मोहवे ते तब फिरि चढ्यो पिथौराराय ॥ ॥ तुम्हें मुनासिब अब याही है देवो मारु बन्द करवाय १८८ सुनिक बातें तहँ माहिल की तैसो कियो पिथौराराय ॥ मर्दनि सर्दनि सूरज टंको जूझे समरभूमि में आय १८६ इकसै हाथी गिरे खेतमें घोड़ा जूझे पाँच हजार ॥ लाखयुग्मकी तह संख्यामा जूझे दिल्ली के सरदार १६० रंजित अभई दूनों जूझे घोड़ा जूझे चार हजार ॥ डेढ़ लाख दल पैदल जूझे संख्या मोहवेकी त्यहिबार १६१ छप्पन हाथी मोहने वाले मारा रहै पिथौराराय ॥ मेख उखरिगै फिरि सागर ते पिरथी कूच दीनकरवाय १६२ . तजिकै शंका अहतका के डंका तुरत दीन बजवाय ।। कैयो दिनका धावा करिकै दिल्ली गयो पिथौराराय १६३