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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६०

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कीरतिसागरकामैदान। ४५९

एँड़ लगावा जब घोड़े के हौदा उपर पहूँचाजाय॥
गुर्ज चलावा बीरभुगन्ता सय्यद लैगे चोट बचाय १८२
ढाल कि औझड़ सय्यद मारी नीचे गिरा महाउत आय॥
तहिले धाँधू तहँ आवत भा औ सय्यदकोदीनहाय १८३
मारन लाग्यो रजपूतनका धाँधूभाय पिथौरा क्यार॥
मारे मारे तलवारिन के नदिया बही रक्तकी धार १८४
ना मुँहँ फेरैं कनउजवाले ना ई दिल्ली के सरदार॥
मूड़न केरे मुड़चौराभे औ रुण्डनके लगेपहार १८५
शूर सिपाही दुहुँ तरफाके दूनों हाथकरैं तलवार॥
कायर भागे समर भूमिते अपने डारि डारि हथियार १८६
तहिले माहिल गे तम्बूमें औ पिरथी ते कहाहवाल॥
जीति न होई महराजाअब आयो देशराज को लाल १८७
ऊदन जावैं जब मोहबे ते तब फिरि चढ्यो पिथौराराय॥
तुम्हैं मुनासिब अब याही है देवो मारु बन्द करवाय १८८
सुनिकै बातैं तहँ माहिल की तैसो कियो पिथौराराय॥
मर्दनि सर्दनि सूरज टंको जूझे समरभूमि में आय १८९
इकसै हाथी गिरे खेतमें घोड़ा जूझे पाँच हजार॥
लाखयुग्मकी तह संख्यामा जूझे दिल्लीके सरदार १९०
रंजित अभई दूनों जूझे घोड़ा जूझे चार हजार॥
डेढ़ लाख दल पैदल जूझे संख्या मोहबेकी त्यहिबार १९१
छप्पन हाथी मोहबे वाले मारा रहै पिथौराराय॥
मेख उखरिगै फिरि सागर ते पिरथी कूच दीनकरवाय १९२
तजिकै शंका अहतका के डंका तुरत दीन बजवाय॥
कैयो दिनका धावा करिकै दिल्ली गयो पिथौराराय १९३