पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६१

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आल्हखण्ड। ४६० ह्याँ सुधिपाई परिमालिक ने आये देशराज के लाल ॥ वन्दन कैकै यदुनन्दन को पलकीचढ़े रजापरिमाल १६४ कीरतिसागर मदनतालपर आये तुरत चंदेलेराय ।। हाथ पकरिक तहँ ऊदन का औछातीमा लीनलगाय १६५ पगिया धरदइ फिरि पैरन मा यह रणवाघु बनाफरराय ॥ हाथ जोरिक उदयसिंह तहँ आपनिकथा गयेसवगाय १६६ सुनिक बातें उदयसिंह की बोले फेरि बोले फेरि चंदेलेराय ।। पारस पत्थर तुम लैलेवो भोगो राज्य बनाफरराय १६७ तुमका सौंपत हम ब्रह्माका ऊदन मानो कही हमार।। तुम जो जैहौ अब कनउज को तौ को धर्म निवाहन हार १६८ इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची सुनो रजापरिमाल ।। तीन तलाके हमका दीन्ही सो अव रहीं करेजेशाल १६६ कहा मानिकै तुम माहिल का नाकछुकीन्ह्यो तनक विचार ।। मोहि निकाल्यो तुम भादों मा राजा मोहने के सरदार २०० इतना सुनिकै मल्हना बोली साँची सुनो लहुरखामाय ॥ जो तुम जैहो अब कनउज का पिरथी मोहवालेय लुटाय २०१ दूध आपनो हम प्यावा है स्यावा तुम्है बनाफरराय ।। बैस बुढ़ापा मा दुखपावा रंजित मरे समरमा आय २०२ अवनहिं जावो तुम कनउजको मानों कही लहुरखा भाय॥ इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय २०३ एक महीना दिन वारा भे कनउज तजे मोहिं अव माय ।। जोनहिं जा` अब कनउजका भाई आल्हा उठे रिसाय २०४ कीन बहाना हम गाँजर का आयन नगर मोहोवा धाय ।। देश निकासी इमरी हेहे जो कहुँ सुनीचनाफरराय २०५