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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६१

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आल्हखण्ड। ४६०

ह्याँ सुधिपाई परिमालिक ने आये देशराज के लाल॥
वन्दन कैकै यदुनन्दन को पलकीचढ़े रजापरिमाल १९४
कीरतिसागर मदनतालपर आये तुरत चँदेलेराय॥
हाथ पकरिकै तहँ ऊदन का औछातीमा लीनलगाय १९५
पगिया धरदइ फिरि पैरन मा यह रणबाघु बनाफरराय॥
हाथ जोरिकै उदयसिंह तहँ आपनिकथा गयेसबगाय १९६
सुनिकै बातैं उदयसिंह की बोले फेरि चँदेलेराय॥
पारस पत्थर तुम लैलेवो भोगो राज्य बनाफरराय १९७
तुमका सौंपत हम ब्रह्माका ऊदन मानो कही हमार॥
तुम जो जैहौ अब कनउज को तौ को धर्म निवाहन हार १९८
इतना सुनिकै ऊदन बोले साँची सुनो रजापरिमाल॥
तीन तलाकैं हमका दीन्ही सो अव रहीं करेजेशाल १९९
कहा मानिकै तुम माहिल का नाकछुकीन्ह्यो तनक बिचार॥
मोहिं निकाल्यो तुम भादों मा राजा मोहबे के सरदार २००
इतना सुनिकै मल्हना बोली साँची सुनो लहुरवाभाय॥
जो तुम जैहौ अब कनउज का पिरथी मोहबालेय लुटाय २०१
दूध आपनो हम प्यावा है स्यावा तुम्है बनाफरराय॥
बैस बुढ़ापा मा दुखपावा रंजित मरे समरमा आय २०२
अवनहिं जावो तुम कनउजको मानों कही लहुरवा भाय॥
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय २०३
एक महीना दिन बारा भे कनउज तजे मोहिं अब भाय॥
जो नहिं जावैं अब कनउजका भाई आल्हा उठैं रिसाय २०४
कीन बहाना हम गाँजर का आयन नगर मोहोबा धाय॥
देश निकासी हमरी ह्वैहै जो कहुँ सुनीबनाफरराय २०५