पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६२

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कीरतिसागरकामैदान । ४६१ मई सहायी शारद मायी स्वपने हाल दीन बतलाय ॥ दया कनौजी लखराना की देखा नंगर मोहोबा प्राय २०६ चंदी पिथौस जो मोहबे का दिल्ली शहर लेब लुटवाय ।। यहिमा संशय कल्लु नाहीं है माता साँचदीन बतलाय २०७ इतना सुनिकै मल्हना बोली लाखनिराना बचन सुनाय॥ धन्य कोखिहै वह तिलका कै ज्यहिमारहे कनौंजीराय २०८ विछरे ऊदन इन मिलवाये हमरी पर्ब दीन करवाय॥ मोरि गोसैंयाँ लखराना हैं जो गामा भये सहाय २०६ सुनिकै बातें ये मल्हना की बोले फेरि कनौजीराय ॥ पुण्य तुम्हारी ते माई सब कीन्हेकाज सिद्धियदुराय २१० सुमिरन करिये जगदम्बा का अम्बा बैठि महल मा जाय॥ काह हकीकति है पिरथी के मोहबाशहर लेयलुटवाय २११ मिला भेंट करि सब काहू सों दोऊ चलत भये सरदार ॥ छाँडिकै बाना सब योगिनका लश्करकूचभयोत्यहिबार २१२ ' पार उतरिकै श्री. यमुना के कुड़हरि डेरा दीन गड़ाय ॥ सातरोज को धावा करिकै कनउजगये कनौजीराय २१३ मल्हनापहुँची फिरि महलनमा राजा गये फेरि दरबार ।। गड़े हिंडोला फिरि मोहवे मा घर घर होय मंगलाचार २१४ खेत छूटिगा दिननायक सों झण्डा गड़ा निशाको आय। परे आलसी खटिया तकि तकि घोंघों कण्ठ रहा धर्राय २१५ माथ नवाबों पितु माता को जिन वल पूर भई यह गाथ ।। देवी देवता ये साँचे हैं इनवच पूर कीन रघुनाथ २१६ - आशिर्वाद देउँ मुन्शीसुत जीवो प्रागनरायण भाय ।। हुकुम तुम्हारो जो पावत ना कैसेकहतललितयहगाय२१७