रहै समुन्दर में जैलौं जल जैलौं रहैं चन्द औ सूर॥
मालिक ललिते के तौलौं तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २१८
करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छायही मोरि भगवन्त २१९
पुत्र हमारे जो चारो हैं तिनपर कृपाकरो रघुराज॥
रामदत्त(१)औकृष्णदत्त(२)औशम्भू(३)ब्रह्मदत्त(४)महराज २२०
नन्द चन्द औ नन्द वाणमें माधव मास बिपति को काल॥
ब्रह्मदत्त गे ब्रह्मलोक को मे अब इन्द्रदत्त युग साल २२१
सवैया॥
संवत वनइस उन्सठ आदि में माधव मास महादुखदाई।
आय गयो विसफोटक रोग अव शान्त भयो बहु देव मनाई॥
फेरि अचानक भय यह बात कि गर्दन फाटिगै फूट कि नाई।
ब्रह्मदत्त बिरंचीलोक बसे ललिते यहदुःख कहैं निज गाई २२२
भक्त तुम्हारे चारो होवैं यह बर मिलै मोहिं भगवान॥
कीरतिसागर मदनताल का पूराचरितकीन हमगान २२३
इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजबाबूप्रयागनारायण
जीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँड़रीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव
बुधकृपाशङ्करसूनु पं॰ललिताप्रसादकृत कीरतिसागर
कीर्त्तिवणनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥
कीरतिसागरकामैदानसम्पूर्ण॥
इति॥