पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६३

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३८ आल्हखण्ड। ४६२ रहे समुन्दर में जोलों जल जोलों रहें चन्द ओ सूर ।। मालिक ललिते के तौलौ तुम यशसों रहौ सदा भरपूर २१८ करों तरंग यहाँ सों पूरण तवपद सुमिरि भवानीकन्त ॥ राम रमा मिलि दर्शन देवं इच्छायही मोरि भगवन्त २१६ पुत्र हमारे जो चारो हैं तिनपर कृपाकरो रघुराज ।। रामदत्त(१) औकृष्णदत्त(२)औशम्भू(३)ब्रह्मदत्त(४)महराज २२० नन्दै चन्द औ नन्दै वाणमें माधव मास विपति को काल॥ ब्रह्मदत्त गे ब्रह्मलोक को मे अब इन्द्रदत्त युग साल २२१ सबैया॥ संवत वनइस उन्सठ आदि में माधव मास महादुखदाई। आय गयो विसफोटक रोग अव शान्त भयो बहु देव मनाई।। फेरि अचानक भय यह बात कि गर्दन फाटिंगै फूट कि नाई । ब्रह्मदत्त बिरंचीलोक बसे ललिते यहदुःख कहें निज गाई २२२ - भक्त तुम्हारे चारो होवें यह बर मिले मोहिं भगवान ॥ कीरतिसागर मदनताल का पूराचरितकीन हमगान २२३ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण जीकीआज्ञानुसारउन्नामप्रदेशान्तर्गतपँडरीकलांनिवासि मिश्रवंशोद्भव बुधकपाशङ्करसूनु पं०ललिताप्रसादकृत कीरतिसागर कीर्तिवणनोनामद्वितीयस्तरंगः २॥ कीरतिसागरकामैदानसम्पूर्ण ॥ इति ॥