पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६४

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अथाल्हखण्ड॥ ठाकुरआल्हसिंहजीकामनावनवर्णन॥ सवैया॥ जौन चहैं ललिते सुख सम्पति तौन भनँ नित शम्भुभवानी। अक्षत चन्दन पुष्पन बिल्व सों पूजतहैं जे महा कउ ज्ञानी॥ नाति औ पूत परोसिन ज्ञातिन भांतिन भांति लहँ सुखखानी। वाराणसी रजधानी विराजत छाजत शम्भु तहाँ सुखदानी ? सुमिरन॥ ज्ञानी ध्यानी सब जानत हैं जगको.शम्भु करें उपकार॥ विकट निशानी कलि पापनकी यामें गये सबै मन हार १ योग यज्ञकै चर्चा उठिगे अर्चा होय न एकोबार ।। विषय कमाई घर घर होवे दर दर उलटिगये व्यवहार २ सन्ध्या तर्पण की चर्चा ना पर्चा ठुमरिन के अधिकार खर्चा होवे सँग वेश्यन के नारी पती देय धिक्कार ३ ऐसे पापी यहिकलियुग मा स्वामी शम्भु करें उपकार