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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६५

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आल्हखण्ड। ४६४

जो तन त्यागै श्री काशी मा सो नर चला जाय भवपार ४
है रजधानी गिरिजापति कै जाहिर तीनि लोक यहिबार॥
अल्हा मनावन को अबजाई भैने जौनु चँदेले क्यार ५

अथ कथाप्रसंग॥


लिल्ली घोड़ी का चढ़वैया माहिल उरई का परिहार॥
काम औ धंधा कछु ज्यहिके ना केवल चुगुलिन का बयपार १
सोयकै जागा सो उरई मा घोड़ी तुरत लीन कसवाय॥
चढ़िकै घोड़ी माहिलठाकुर दिल्ली शहर पहूँचा जाय २
बड़ी खातिरी पिरथी कीन्ह्यो अपने पास लीन बैठाय॥
समय पायकै माहिल बोले मानो कही पिथौराराय ३
आल्हा ऊदन है कनउज मा मोहबा आपु लेउ लुटवाय॥
ऐसो अवसर फिरि मिलिहै ना मानो कही पिथौराराय ४
इतना सुनिकै पृथीराज ने डंका तुरत दीन बजवाय॥
चन्दन गोपी ताहर सजिगे मनमा श्रीगणेश पद ध्याय ५
लैकै फौजै सातलाखलों पिरथी कूच दीन करवाय॥
कीरतिसागर मदनतालपर पहुँचा फेरि पिथौरा आय ६
तम्बू गड़िगे चौगिर्दा सों सब रँग ध्वजारहे फहराय॥
पिरथी बोले फिरि माहिलते राजै खबरि सुनावो जाय ७
हाल हमारो सब जानत हौ तुमते कहौं काह समुझाय॥
इतनासुनिकै माहिल चलिमे पहुँचे जहाँ चॅदेलेराय ८
हाल बतायो परिमालिक ते माहिल झूंठ साँच समुझाय॥
सुनिकै बातैं माहिल मुखते राजा गये सनाकाखाय ९
अवापसीना परिमालिक के शिर सों छत्र गिरभमहराय॥
खबरि पायकै मल्हना रानी माहिलमद्दल लीनबुलवाय १०