पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४६९

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आल्हखण्ड । ४६८ दीख्यो जगनिक को चौड़ाने गई हाँक दीन ललकार ।। देउ बछेड़ा हरनागर को पाछे जाउ नंदी के पार ७ इतना सुनिकै जगनायक जी चौड़े बोले बचन सुनाय ।। लौटिक अइहैं जब कनउज ते घोड़ा तुरत दिहँ पठवाय था ऐसे घोड़ा हम देहैं ना ना मानो कही चौडियाराय ॥ इतना मुनिक चौड़ा वकशी आपन हाथी दीन बढ़ाय ४६ ऍड़ लगायो जगनायक जी होदा उपर पहूँचे जाय । लीन्यो कलँगी शिर चौड़ाकी चौड़ा बहुत गयो शरमाय ५० लेके कलंगी जगनायक जी नही निकरि गये वा पार ॥ चौड़ा बकशी फिरि बोलत ना मानो घोड़े के असवार ५.१ तुम अस योधा हैं मोहवे मा कस ना राज्यकरें परहिवाए। कलँगी हमरी अब दै देवो जावो आप कनौजै हाल ५२ इतना सुनिकै जगनायक जी बोले सुनो चौंड़ियाराय॥ कलँगी तुम्हरी हम ऊदन को कनउजशहरदिखाउबजाय ५३ इतना कहिकै जगनायक जी अपनो घोड़ा दीन बढ़ाय ।। तीनि दिनौना को धावाकरि कुड़हरितुरतगयोनगच्याय ५४ जेठ महीना ठीक दुपहरी शिरपर घामगयो बहुआय ॥ बरगद दीख्यो इक जगनायक डारन रही सघनता छाय ५५ तहँहीं बाँध्यो हरनागर को आपो सोयो जीन विछाय।। दीख किसानन तहँ घोड़ा का औ असवार निहारा आय ५६ सोबत दीख्यो जगनायक को घोड़ा - देखि गये हर्षाय ।। करें बतकही त: आपस मा ऐसो घोड़ दीख नहिं भाय ५७ करत बतकही सब आपस में अपने धाम पहूँचे आय ।। वात फेलिगे यह कुड़हरिमा गंगा कान परी तब जाय ५८