पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७०

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. आल्हाकामनावन । १६६ उठा तडाका सो महलनते बरगद तरे पहूंचा आय ।। सोवत दीख्यो जगनायक को घोड़ा कोड़ा लीन चुराय ५६ घोड़ बँधायो निज महलनमा औं यह हुकुमदीन फरमाय ॥ चर्चा करि है जो घोड़ा की ताको मूड़ देउँ गिरवाय ६० इतना कहिक गंगा ठाकुर महलन करन लाग विश्राम ॥ सोयकै जागे जब जगनायक लागे लेन रामको नाम ६१ घोड़ न दीख्यो हरनागर को तब देही ते गयो परान ॥ देखन लाग्यो चौगिर्दा ते ओमनकरनलाग अनुमान६२ चौड़ा आयो का पाछे ते हमरो घोड़ चुरायो आय ॥ घोड़ा कोड़ा कछु देखे ना मनमा गयो सनाकाखाय ६३ चिह्न देखिकै तहँ टापन के कुड़हरि शहर पहूँचा आय ।। जहाँ अर्थाई पनिहारिन की जगनिक तहाँ पहुँचाजाय ६४ करें बतकही ते आपस मा घोड़ा दीख नहीं असमाय ।। जैसो लायो नरनायक है मानो उड़न बछेड़ा आय ६५ सुनिकै चर्चा तहँ घोड़ा की जगनिकखुशीभयोअधिकाय।। जहाँ कचहरी गंगाधर की जगनिक तहाँ पहूँचाजाय ६६ बड़ी स्वातिरी करि गंगाधर अपने पास लीन बैठाय ॥ जगनिक बोले गंगाधर ते घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ६७ चढ़ा पिथौरा है मोहवापर लीन्हे सात लाख चौहान ।। जायँ मनावन हम आल्हाको हमरे बचन करो परमान ६८ जो सुनि पैहें आल्हा ऊदन तुम्हरो नगरले लुटवाय ।। त्यहिते तुमका समुझाइत है घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ६६ तर महराजा कुड़हरिवाला बोला काहगयो चौराय ।। चोर न गकुर कउ कुड़हरि मा घोड़ा कोड़ा लेय चुराय ७० ।