उठा तड़ाका सो महलनते बरगद तरे पहूँचा आय॥
सोवत दीख्यो जगनायक को घोड़ा कोड़ा लीन चुराय ५९
घोड़ बँधायो निज महलन मा औ यह हुकुमदीन फरमाय॥
चर्चा करि है जो घोड़ा की ताको मूड़ देउँ गिरवाय ६०
इतना कहिकै गंगा ठाकुर महलन करन लाग विश्राम॥
सोयकै जागे जब जगनायक लागे लेन रामको नाम ६१
घोड़ न दीख्यो हरनागर को तब देहीं ते गयो परान॥
देखन लाग्यो चौगिर्दा ते औ मनकरनलाग अनुमान ६२
चौंड़ा आयो का पाछे ते हमरो घोड़ चुरायो आय॥
घोड़ा कोड़ा कछु देखै ना मनमा गयो सनाकाखाय ६३
चिह्न देखिकै तहँ टापन के कुड़हरि शहर पहूँचा आय॥
जहाँ अर्थाई पनिहारिन की जगनिक तहाँ पहुँचाजाय ६४
करैं बतकही ते आपस मा घोड़ा दीख नहीं असमाय॥
जैसो लायो नरनायक है मानो उड़न बछेड़ा आय ६५
सुनिकै चर्चा तहँ घोड़ा की जगनिकखुशीभयोअधिकाय॥
जहाँ कचहरी गंगाधर की जगनिक तहाँ पहूँचाजाय ६६
बड़ी खातिरी करि गंगाधर अपने पास लीन बैठाय॥
जगनिक बोले गंगाधर ते घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ६७
चढ़ा पिथौरा है मोहबापर लीन्हे सात लाख चौहान॥
जायँ मनावन हम आल्हाको हमरे बचन करो परमान ६८
जो सुनि पैहैं आल्हा ऊदन तुम्हरो नगरलेयँ लुटवाय॥
त्यहिते तुमका समुझाइत है घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ६९
तब महराजा कुड़हरिवाला बोला काहगयो बौराय॥
चोर न ठाकुर क्वउ कुड़हरि मा घोड़ा कोड़ा लेय चुराय ७०
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७०
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७
आल्हाकामनावन। ४६९
