पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७१

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॥ आल्हखण्ड । ४७० हमरे घोड़न की कमतीना चाहो जौनलेउ कसवाय ॥ तुम्हरो घोड़ा हम जानैं ना ओ जगनायक बात वनाय ७१ सुनिक बातें गंगाधर की मैने ब्बला चंदेलेक्यार । घोड़ा कोड़ा जो पैहैं ना तो मरिजायँ पेटको मार ७२ ईजति रहै ना मोहवे की तुमते साँच दीन बतलाय ।। होउ हितैपी परिमालिक के घोड़ा कोड़ा देउ मँगाय ७३ सुनिकै बात जगनायक की धीरज बहुत दीनसमुझाय ॥ खुबार पायकै महरानी ने राजे पास लीन बुलवाय ७४ कहि समुझावा महराजा ते विपदा परी मोहोवे आय ।। तुम्हे मुनासिब यह नाहीं है घोड़ा कोड़ा लेउ चुराय ७५ देउ तडाका घोड़ा कोड़ा राजन यहै बड़ाई आय ॥ सुनिकै बातें महरानी की. तुरतै गयो सायर धाय ७६. डाटन लाग्यो तहँ चकरन को घोड़ा पता कनौजे य।। पाय इशारा महराजा का चाकर उठे लेके घोड़ा हरनागर को राजा पासहरतिवाउ आय॥ दीस्यो सूरति हरनागर के जगना चढ़ा तड़ाकाधाय ७८ जैसे हमका घोड़ा दीन्ह्यो तेसे कोड़ा देउ मॅगाय ॥ सवालाख को ओ कोड़ा है जो बनववा धुंदेलाराय ७६ लोभ न लावो मन अपने मा कोड़ा तुरत देउ मॅगवाय॥ नहीं तो लौटों जब कन उजते कुड़हरिशहर लेउँ लुटवाय ८० कोड़ा दीन्ह्यो ना गंगाधर जगना कूच दीन करवाय ॥ है दिलोना के अन्तर मा कनउज शहर पहूँचे आय ८१ लगी दुकानें हलवाइन की सबविधिसजाशहरअधिकाय।। ५ दुकानन मा पूछत भा कह पै वस वनाफरराय ८२ मो चौंड़ियारा,