लिखी हकीकति जो मल्हनाने सो जगनायक दीन गहाय ।।
पढ़िकै चिट्ठी महरानी के आल्हाचुप्पसाधि रहिजाय ९५
ऊदन बोले जगनायक ते भोजन हेतु चलौ सरदार ॥
आल्हा जावै जो मोहवे को तो हम बैठि करैं ज्यँवनार ९६
बारह दिनके अब अरसा मा लूटी नगर पिथौराराय ॥
ईजति रैहै नहिं मल्हना की जो नहिं चलें वनाफरराय ९७
डोला लेहैं चंद्रावलि का पारस पत्थर लिहैं छिड़ाय ।।
नहीं बनाफर सिरसा वाला जो गाढ़े मा होय सहाय ९८
नाहीं सुनिकै मलखाने की आल्हा छाँड़ि दीन डिंडकार ।।
ऊदन इन्दल देबा सय्यद रोवन लागि सबै सरदार ९९
बात फैलिगै यह महलन मा की मरिगये बीर मलखान ।।
को गति बरणै त्यहि समयाकै महलनछायोघोरमशान १००
द्यावलि सुनवाँ फुलवा रानी शिरधुनि बार बार पछितायँ ।।
हाय ! बनाफर सिरसा वाले कैसे मरे समर में जाय १०१
सवैया॥
हाय ! गयी सवमन्दिर छाय सुहाय नहीं ललिने सुख शय्या ।
वीर मरे मलखान कुमार गई रणसों सब की मनसय्या ।।
हाय ! दयी बलवान सदा दुख औसुखको करि कर्म द्यवय्या।
बीरबली मलखान समान जहाननहीं अस सोदर भय्या १०२
अस कहि रोवै आल्हा ठाकुर दोऊ नैनन नीर वहाय ।।
बहु समुझायो जगनायक ने धीरज धरयो वनाफरराय १०३
अब नहिं जावैं हम मोहवे को तुमते सॉच देयँ बतलाय ।।
खवरि जो पावत मलखाने की दिल्ली शहर लेत लुटवाय१०४