पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७३

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आल्हखण्ड। ४७२ लिखी हकीकति जो मल्हनाने सो जगनायक दीन गहाय ।। पदिक चिट्ठी महरानी के पाल्हाचुप्पसाधि रहिजाय ९५ ऊदन चोले जगनायक ते भोजन हेतु चलो सरदार ॥ आल्हा जा जो मोहवे को तो हम वैठि करें ज्यवनार ६६ बारह दिनके अब अरसा मा लूटी नगर · पिथौराराय ॥ ईजति रहै नहिं मल्हना की जो नहिं चलें वनाफरराय ६७ डोला लेहैं चन्दावलि का पारस पत्थर लिहैं छिड़ाये ।। नहीं बनाफर सिरसा वाला जो गाढ़े मा होय सहाय ६८ नाहीं सुनिक मलखाने की आल्हा छाँड़ि दीन डिंडकार ।। ऊदन इन्दल देवा सय्यद रोवन लागि सबै सरदार ९९ बात फैलिगै यह महलन मा की मरिगये बीर मलखान ।। को गति वरणे त्यहि समयाकै महलनकायोघोरमशान १०० द्यावलि सुनवाँ फुलवा रानी शिरधुनि बार बार पछितायें ।। हाय ! बनाफर सिरसा वाले कैसे मरे समर में जाय १०१ सवैया॥ हाय ! गयी सबमन्दिर छाय सुहाय नहीं ललिने सुख शय्या । वीर मरे मलखान कुमार गई रणसों सब की मनसय्या ।। हाय ! दयी बलवान सदा दुख औसुखको करि कर्म द्यवय्या। वीरवली मलखान समान जहाननहीं अम सोदर भय्या १०२ अस कहि रो, आल्हा ठाकुर दोऊ नैनन नीर वहाय ।। बहु समुझायो जगनायक ने धीरज धरयो वनाफरराय १०३ अब नहिं जावें हम मोहवे को तुमते सॉच देय बतलाय ।। नुवरि जो पावत मलखाने की दिल्ली शहर लेत लुटवाय१०४