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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७४

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आल्हाकामनावन । ४७३

मलखे मरिगे जब सिरसा मा तबहुँ न लड़े चंँदेलराय ॥
मोहिं निकारयो उन भादों मा दारुण बाणी बज्र चलाय १०५
इतना कहिकै जगनायक सों आल्हा ठाकुर रह्यो चुपाय ।।
ऊदन बोले जगनायक ते भोजनकरोशोक विसराय१०६
तब जगनायक फिरि बोलत मे मानो कही वनाफरराय ।।
संग न जावो जो मोहबे को हमरो शीश लेउ कटवाय १०७
बातैं सुनिकै जगनायक की द्यावलि कहा बचन समुझाय॥
विपदा तुम्हरी के संगी हैं समरथ बड़े बनाफरराय १०८
इतना सुनिकै आल्हा बोले माता काह गई बौराय ।।
तीनि तलाके राजै दीन्हीं सो छाती माँ गई समाय १०६
विपदा भोगी हम मारग में सावन विकट बादरी घाम ।।
पियें ल्यवारिन इन्दल पानी जो सुख चैन करैं विश्राम ११०
इतना सुनिकै ऊदन बोले दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ।।
करो तयारी अब मोहवे की पाछिल बात सबै विसराय १११
इतना सुनिकै आल्हा- जरिगे नैनन गई लालरी छाय।।
तब समुझायो देवा ठाकुर चहिये चलन महोबे भाय ११२
मनै आयगै यह आल्हाके तुरतै हुकुम दीन फरमाय ।।
भोजन करिये जगनायक जी चलिबेअबशिमाहोबेभाय ११३
भोजन कीन्ह्यो जगनायकजी संग मा उदयसिंह सरदार ।।
जहाँ कचहरी चन्देलेकी आल्हा गये राज दरबार ११४
कही हकीकति महराजा ते दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ॥
आज्ञा पावें महराजा की देखें नगर मोहोबा जाय ११५
चढ़ा पियौरा दिल्लीवाला लीन्हे सातलाख चौहान ॥
जो नहिं जावैं हम मोहवे को तौ वह लूटै नगर निदान ११६