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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७६

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आल्हाकामनावन । ४७५

कैसो भैने चन्देले का गड़बड़ कीन हाट माँ आय ॥
इतना सुनिकै जगनायक ने मनमासुमिरि दूरगामाय १२९
भाला मारा ईसपात मा सातो तवा निकरिगे पार ॥
स्याबसि स्याबसि क्षत्री बोले हरषे उदयसिंह सरदार १३०
सिंह कि बैठक जगना बैठ्यो राजा बहुत गयो शरमाय ।।
ऊदन बोले महराजा ते दोऊ हाथजोरि शिरनाय १३१
आजु साँकरा परिमालिक पर औ चढ़ि अवा पिथौराराय।।
आयसु पावैं महराजा की जावें नगरमोहोबा धाय १३२
गेरी माता सम मल्हना है तापर परी आपदा आय ।।
बीजक समझो तुम गाँजर का दादा कैद देउ छुड़वाय १३३
घोड़ पपीहा जखमी ह्वैगा जूझे स्वानमती के भाय ।।
जोगा भोगा की बदली मा सबियाँकनउजजायबिकाय१३४
घोड़ पपीहा की यउजी मा भूरी हथिनी देउ मँगाय ।।
जोगा भोगा के बदले मा लाखनि संग देउ पठवाय १३५
बारह बरसन का अरसा भा पैसा मिला न गाँजर क्यार ।।
तीनि महीना औ त्यारह दिन गाँजर खूब कीन तलवार १३६
लैकै पैसा सब गाँजर का औ भरिदीन खजाना आय ।।
लाखनि राना को सँग देवो तब छातीका डाह बुताय १३७
कीन्हीं किरिया लखराना है मोहवे चलब तुम्हारे साय ।।
आज्ञा देवो लखराना को साँची सुनो भूमिके नाथ १३८
बातै सुनिक बघऊदन की जयचँद बहुत गयो घबड़ाय ।।
बोलि न आवा महराजा ते मुहँकापानगयोकुम्हिलाय१३९
थर थर काँपन देही लागी शिरते छत्र गिरा भहराय ।।
करतब अपनीपर शोचत भा यह महराजकनौजीराय १४०