पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४७९

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आल्ह खण्ड। ४७५ जवे मोहोवे को तुम चलिहो चलिवे साथ बनाफरराय॥ भाजु साँकरा परिमालिक पर औचढिवा पिथौराराय१६५ संगै जो हम ऊदन के करिखे जूझ तहाँपर जाय ।। जो मरिजवे समरभूमि मा तो यशरही लोकमाछाय १६६ जो बचि अइवे हम मोहवे ते रानी संग कख फिरि आय।। सुनिकै बातें लखराना की पदमिनिगिरीपछाराखाय१६७ होश उड़ाने महरानी के पीले अंग भये अधिकाय॥ थर थर देही काँपन लागी रोवाँ सकल उठे तन्नाय १६८ यह गति दीख्यो महरानी के तब गहिलीन कनौजीराय ।। चूम्यो चाट्यो वदन लगायो धीरज फेरिदीनअधिकाय १६६ रानी पदमिनि पलँगा बैठी नैनन आँसू रही बहाय ॥ बोले लाखनि तव पदमिनि ते रानी काह गयी वोरा १३० विटिया आहिउ का बनिया की जोरण सुनिकै गयी डराय।। भरम न राखें क्षत्रानी मन रानी साँचदीन बतलाय १७१ मुनि सुनि बातें लखराना की रानी गयी सनाकाखाय।। मनमा शोचे मने विचार मनमन बारवार पछिताय १७२ धीरज धरिक पदमिनि बोली प्रीतम साँच देय बतलाय ।। कहे टुकाचिन के लाग्यो ना नहिं सब जैहँ कामनशाय१७३ कहाँ कनौजी तुम महराजा चाकर कहाँ बनाफरराय । नौकर स्वामी की समता ना विद्या काह दयी बिसराय१७४ बनते कन्या धरि आई ती त्यहिके अहीं बनाफरराय ।। अहीं टुकरहा परिमालिक के तुम्हरीकीनगुलामीआय १७५ साथ गुलामन औ राजा का कहँ तुम पढ़ा कनौजीराय ।। -किरिया कीन्ही जो ऊदन ते स्वामी ताहि देउ विसराय१७२