पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४८१

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आल्ह खण्ड । १८० इतना कहिके लाखनि चलिमे , रानी पकरिलीन बैठाथ ।। करी बदरिया तुमका ध्या कउँधाबीरन कीवलिजायें १८७ मिमिकिकैवरसोम्बरमहलनमा कन्ता एक रैनि रहिजायँ ।। इतना मुनिकै लाखनि बोले रानी साँव देय बतलाय १८८ पाथर बरसें आसमान ते ताहुं न रहें कनौजीराय ।। लौटि मोहोवे ते आवत्र जब रानी संग करब तब आय १८६ तेज न है जो देहीमा को मुहँ धरी पिथौराक्यार ।। मुची परि है बादशाह ते लड़िहैं बड़े बड़े सरदार १६० लौटि मोहोवे ते आवब जब रानी कहाँ न टास्त्र वार । अब हम जावत' हैं जल्दी सों दारे उदयसिंह सरदार १६१ मुनिके वात ये लाखनि की रानी फेरि लीन बैठाय॥ कैसे रहिवे हम कनउज में स्वामी देउ मोहिं बतलाय१६२ पगिया अरझी तब मोहवे मा यहु मरिजाय बनाफरराय ॥ हाय ! पियारे ज्यहि प्रीतम को ज्ञानीसमयदीनअलगाय१६३ भुखी भवानी आल्हे भो इन्दल सहित लहुरवाभाय । भरी जवानी ज्यहि प्रीतमको हमते अलगदीनकरवाय १६४ काहे जनमी द्यावलि इनका ई दहिजार बड़े बरियार ।। सुनवाँ फुलवा चित्तररेखा तीनों होउ विना भरतार १६५ करो वियारी तुम महलन मा पलँगा उपर करो विश्राम ॥ मोरि जवानी स्वास्थ करिक तब तुम जाउ मोहोवेग्राम १६६ सुनिक वा। ये पदमिनि की बोला फेरि कनौजीराय ॥ खड़ा बनाफर है दारे मा रानी काह गई वोराय १६७ अब तुम ध्यावो फूलमती का तेई फेरि मिलेह आय ॥ धर्म पतित्रत का छाँड्यो ना याही कहें तोहिं समुझाय १६८