पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४८२

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) आल्हाकामनावन। १८१ गारी देवो नहिं ऊदन का प्यारी मित्र हमारो जान ।। करें बियारी नहिं महलन में प्यारी सत्य प्रतिज्ञा मान १६६ मुनिकै बातें लखराना की पदमा ठीक लीन ठहराय ।। प्रीतम हमरे अब मनिहैं ना जैहँअवशि मोहोबा धाय २०० यह सोचिकै मन अपने मा रानी बोली फेरि सुनाय ॥ डोला हमरा सँगमा लैक राजन कूच देव करवाय २०१७ मोरि लालसा यह ड्वालतिहै बालम मोहवा देउ दिखाय ॥ बनोवास को रघुनन्दन गे सीता लैगे साथ लिवाय २०२ सुर औ असुरन के संगर मा दशरथ साथ केकयी माय॥ लै सतिभामा कृष्णचन्द्र सँग भौमासुरै पछारा जाय २०३ जिन मर्यादा यह बाँधी है तेई नारि संग मा लीन ॥ बड़े . प्रतापी कृष्णचन्द्र जी सोऊ पन्थ सत्य यह कीन २०४ आगे चलिगे जो क्षत्री हैं तिनमग चलनचही महराज ॥ संग में लेकै बालम चलिये करिये सत्यधर्मको काज २०५ इतना कहिकै रानी पदमा आँखिनभरे आँसु अधिकाय॥ तब लखराना लै रुमाल को आँसूपोंचि कहासमुझाय२०६ धीरज राखो चार मास लौ पचये मिलव तुम्हें हम आय ।। सत्य सनेह ज्यहि ज्यहिपर है सोत्यहिमिलतडाकाधाय२०७ यामें संशय कळु नाहीं है ब्राह्मण रोज कहें यह गाय ॥ शान्त्र पुरापन की बानी यह रानी तुम्हें दीन बतलाय २०८ धर्म पतिव्रत ज्यहि नारी के प्यारी प्रीतम के अधिकाय ॥ कहा न टारे सो प्रीतम का चहु जस पर आपदापाय२०६ तो सब कीरति जाय नशाय।। इसे बनाफर म्बहिं मारग मा मेहरा बड़े कनौजीराय २१. जो विलमावो अब महलन मा