पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४८५

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आल्हखण्ड । ४८४ मारु मार के मौहरि बाजी बाजी हाव हाव करनाल । खर खर खर खर के रथ दौरे ख्वा चले पवनकी चाल २३५ आगे हलका मे हाथिन के पाछे चलन लाग असवार ।। बीच म डोला महरानिन के केंगे अगलवगल सरदार २३६ भूरी हथिनी पर लाखनि हैं ऊदन दुलपर असवार ।। आल्हा बैठे पचशब्दा पर इन्दल सहित भये तय्यार २३७ कीनि सवारी हरनागर पर मैंने जौनु चंदेले क्यार । घोड़ मनोहरपर देवा है सय्यद सिर्गापर असवार २३८ लला तमोली धनुवाँ तेली येऊ लिये ढाल तलवार ॥ पैदल सेना अनगन्ती सब गर्जतचलीसमरत्यहिवार २३९ चारिकोस जब परहुल रहिगा लाखनि डेरा दीन डराय ॥ लाखनि बोले तहँ आल्हा ते साँची सुनो बनाफरराय २४० दियना अंटापर परहुल मा सो त्यहि आप देउ उतराय ।। वचन मानिकै हम पदमिन के वादा कीन तंहांपर भाय २४१ दियना शालत है जियरे मा मानो कही बनाफरराय ।। मुनिकै बातें कनवजिया की आल्हाधावनलीनवुलाय२४२ लिखिकै चिट्ठी दै धावन को परहुल तुस्त दीन पठवाय ।। जहाँ कचहरी है सिंहा के धावन तहाँ पहूँचा जाय २४३ चिट्ठी देके महाजा का वाकी हाल कहा शिरनाय ।। पदिक चिट्ठी सिंहा जरिगा डंका तुरतदीन बजवाय २४४ धावन चलिभा तब परहुल ते लश्कर फेरि पहूँचा आय ।। कही हकीकति सब आल्हा ते तब जरिगये कनौजीराय२१५ हुकुम लगायो अपने दलमा डंका तुरत दीन बजवाय ।। सजिकै सेना दुहुँतरफा ते पहुँत्री समरभूमिमें आय २४६