बातै सुनिकै लखराना की देबा कहा तुरत शिरनाय ।।
साँचे धर्मन के राँचेहैं यांचे मिले कनौजीराय २९५
कर्म कुलीनन के कीन्हे हैं साँचे मित्र बनाफरराय ॥
बातै सुनिक ये देबा की बोले तुरत उदयसिंहराय २९६
स्याबसि स्याबसि लाखनिराना कीन्ह्यो धर्म युद्धसों रार ।।
काहे न होवै यश क्षत्रिन को ऐसे युद्ध बीर बरियार २९७
इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतै कूच दीन करवाय ॥
नदी बेतवा के ऊपर मा छोरी कमर बनाफरराय २९८
डेरा गड़िगे तहँ क्षत्रिन के तम्बू गड़ा बनाफर क्यार ॥
जहँ महराजा लाखनि बैठे भारी लाग तहाँ दरबार २९९
आल्हा ठाकुर के तम्बू मा भैने गयो चँदेले क्यार ।।
कलम दवाइति कागज लैकै आल्हा पत्र कीन तैयार ३००
चिट्ठी दीन्ही आल्हा ठाकुर बोले उदयसिंह सरदार ।।
खबरि जनावो तुम मल्हनाको आये कनउज राजकुमार ३०१
हमरी दादाकी दिशि ह्वैकै रानिन कीन्ह्यो दण्ड प्रणाम ॥
काह हकीकति है पिरथी कै सुखसोंकरो महल विश्राम ३०२
जितनी बिल्ली हैं दिल्ली की किल्ली पकरि नचावों माय ॥
तौ तौ साँचे हम ऊदन हैं यहतुमकह्योसँदेशाजाय ३०३
सुनि संदेशा बघऊदन का हरनागरै लीन कसवाय ।।
चढ़ा तड़ाका हरनागर पर जगनिकयथातथ्यशिरनाय ३०४
नदी बेतवाको उतरत भा पहुँचत भयो मोहोबेद्वार ॥
फाटक खोल्यो दरवानी ने पहुँचे राजभवन सरदार ३०५
रानी मल्हना के महलन मा माहिल आयगयो त्यहिवार ।।
तबलों पहुँचे जगनायक जी बोला उरई का सरदार ३०६
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आल्हाकामनावन। ४८९
