पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९०

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२७ पाल्हाकामनावन। १८६ बातें सुनिकै लखराना की देवा कहा तुरत शिरनाय ।। साँचे धर्मन के राँचेहँ यांचे मिले कर्णोजीराय २६५ कर्म कुलीनन के कीन्हे हैं साँचे मित्र बनाफरराय ॥ बातें सुनिक ये देवा की बोले तुरत उदयसिंहराय २६६ स्याबसि स्यावसि लाखनिराना कीन्ह्यो धर्म युद्धसों रार ।। काहे न होवे यश क्षत्रिन को ऐसे युद्ध बीर बरियार २६७ इतना कहिकै उदयसिंह ने तुरतै कूच दीन करवाय ॥ नदी बेतवा के ऊपर मा छोरी कमर बनाफरराय २६८ डेरा गड़िगे तहँ क्षत्रिन के तम्बू गड़ा बनाफर क्यार ॥ जहँ महराजा लाखनि बैठे भारी लाग तहाँ दरबार २६६ आल्हा गकुर के तम्बू मा भैने गयो चंदेले क्यार ।। कलम दवाइति कागज लेके आल्हा पत्र कीन तैयार ३०० चिट्ठी दीन्ही आल्हा ठाकुर बोले उदयसिंह सरदार ।। खबरि जनावो तुम मल्हनाको आये कनउज राजकुमार ३०१ हमरी दादाकी दिशि _कै रानिन कीन्यो दण्ड प्रणाम ॥ काह हकीकति है पिरथी के सुखसोंकरो महल विश्राम ३०२ जितनी बिल्ली हैं दिल्ली की किल्ली पकरि नचावों माय ॥ तो तो साँचे हम ऊदन हैं यहतुमकह्योसँदेशाजाय ३०३ सुनि संदेशा बघऊदन का हरनागरै लीन कसवाय ।। चढ़ा तड़ाका हरनागर पर जगनिकयथातथ्यशिरनाय ३०४ नदी बेतवाको उतरत भा पहुँचत भयो मोहोबेद्धार ॥ फाटक खोल्यो दरवानी ने पहुँचे राजभवन सरदार ३०५ रानी मल्हना के महलन मा माहिल आयगयो त्यहिबार ।। तबलों पहुँचे जगनायक जी बोला उई का सरदार ३०६