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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९१

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आल्हखण्ड। ४९०

कवलों अइहै आल्हा ठाकुर नीके हवै बनाफरराय ।।
इतना सुनिकै जगनायक जी तुरतै बोले वचन बनाय ३०७
हिंया न अइहै आल्हा ठाकुर अब चहु कऊ मनावनजाय । ।।
उनके खातिर कनवजिया घर नीके द्वऊ बनाफरराय ३०८
पारस लैकै तुम कुठरी ते पिरथी पास देउ पहुँचाय ।।
लैकै कुंजी जगनायक जी कुठरीखोलिदीनबतलाय ३०९
उठे झड़ाका माहिल ठाकुर कुठरी अटे तडाकाधाय ।।
साँकरिमारी जगनायक जी ताला तुरत दीन डरवाय ३१०
बन्द कुठरिया माहिल ठाकुर मल्हना गई सनाकाखाय ॥
चिट्ठी दीन्ह्यो फिरिजगनायक औसबहालकह्योसमुझाय ३११
पढ़िक चिट्ठी मल्हना रानी औ जगनायक संग लिवाय॥
जहाँ कचहरी परिमालिक की चिट्ठी तहाँ दिखाई जाय ३१२

छन्द ॥


पढ़ि पत्रतहाँ। लहिमोद महाँ॥ परिमाल जहाँ। तजिशोकतहाँ।।
भवनमें आय । महासुख पाय ॥ लखिकैदतहाँ । उरई को जहाँ।
महरानि गई। तजि बन्धु दई । अतिवेगचला। उरईको लला॥
पृथिराजजहाँ। स्वउआयतहाँ ॥सबहालकहा। विपदाजोलहा३१३



सुनि कै बातैं सब माहिल की यहु महराज पिथौराराय ॥
घाट वयालिस तेरहघाटी सवियाँतुरतदीन रुकवाय३१४
पहरा घूमैं कहुँ पैदल का कहुँ कहुँ फिर घोड़असवार ।
भनँद वधैया मोहबे बाजै घर घर होय मंगलाचार ३१५
फाटक बन्दी है मोहबे मा घरका अवै न बाहर जाय ॥
आल्हा ऊदन की कीरति तहँ घर घर रहे नारि नर गाय ३१६
आल्हा मनौआ पूरण करिकै भ्यावों रामचन्द्र महराज॥