पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९१

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आल्हखण्ड। ४६. कवलों अइह आल्हा ठाकुर नीके हवे बनाफरराय ।। इतना मुनिक जगनायक जी तुरते बोले वचन बनाय ३०७ हिंया न अइहें आल्हा ठाकुर अब चहु कऊ मनावनजाय । ।। उनके खातिर कनवजिया घर नीके दऊ बनाफरराय ३०८ पारस लेके तुम कुठरी ते पिरथी पास देउ पहुँचाय ।। लेकै कुंजी जगनायक जी कुठरीखोलिदीनवतलाय ३०६ उठे झड़ाका माहिल ठाकुर कुठरी अदे तडाकाधाय ।। साँकरिमारी जगनायक जी . ताला तुरत दीन डरवाय ३१० बन्द कुठरिया माहिल ठाकुर मल्हना गई सनाकाखाय ॥ चिट्ठी दीन्यो फिरिजगनायक औसवहालकटोसमुझाय ३११ पदिक चिट्ठी मल्हना रानी औ जगनायक संगलिवाय॥ जहाँ कचहरी परिमालिक की चिट्ठी तहाँ दिखाई जाय ३१२ छन्द ॥ पदि पत्रतहाँ। लहिमोद महाँ॥ परिमाल जहाँ। तजिशोकतहाँ।। भवनमें आय । महासुख पाय ॥ लखिकैदतहाँ । उरई को जहाँ। महरानि गई। तजि बन्धु दई । अतिवेगचला। उईको लला॥ पृथिराजजहाँ। स्वउआयतहाँसवहालकहा। विपदाजोलहा३१३ सुनि के वातें सव माहिल की यहु महराज पिथौराराय ॥ घाट क्यालिस तेरहघाटी सवियाँतुरतदीन रुकवाय३१४ पहरा घूमैं कहुँ पैदल का कहुँ कहुँ फिर घोड़असवार । भनँद वधैया मोहवे बाजे घर घर होय मंगलाचार ३१५ फाटक बन्दी है मोहवे मा घरका अवै न बाहर जाय ॥ आल्हा ऊदन की कीरति तहँ घर घर रहे नारिनर गाय ३१६ भारह मनौआ पूरण करिक भ्यावों रामचन्द्र महराज॥