पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९५

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भाल्हखण्ड। ४६४ विद्या पूरण सहदेऊ की कीरति रही जगतमें छाय ३ बड़ा प्रतापी रण मण्डल मा नकुलो समरधनी तलवार ।। करण न होतो जो दुनिया मा तौ को होत दान परियार ४ छूटि सुमिरनी गै देवन के शाका सुनो पिथौरा क्यार ।। नदी बेतवाके डाँडेपर लाखनि करी खूब तलवार ५ अथ कथाप्रसंग ॥ आल्हा ठाकुर के तम्बू मा भारी लाग राज दरबार । त्यही समैया त्यहि औसर मा वोले उदयसिंह सरदार ? घाट बयालिस पिरथी रोंके दादा करो कछु तदवीर ।। इतना सुनिकै आल्हा बोले उदन धरो हृदय में धीर २ इतना कहिकै आल्हा ठाकुर तुरते पान दीन धरवाय ॥ है कोउ योधा दूनों दल मा जो वितवा पर पान चबाय ३ इतना सुनिकै दोऊ दल के क्षत्री गये सनाकाखाय ।। बोलि न आवा क्यहु क्षत्री ते सबहिन मूड़ लीन अउँधाय ४ ऊदन तड़पे त्यहि समया मा पहुँचे पाननिकट फिरिजाय ॥ आल्हा बोले तव ऊदन ते मानो कही लङवाभाय ५ अवती बारी है लाखनि के गाँजर फते कीन तुम जाय ॥ नदी बेतवा के मुर्चा पर जावें अवशि कनौजीराय ६ मीराताल्हन धनुवाँ तेली बोले दोऊ शीश नवाय॥ तजी सम्पदा सव कनउज की आये लड़न कनौजीशय ७ नव दिन दश दिन भेगौने के सो तजिदई पदमिनी नारि ॥ करिये नदी भयानक रारिक बात बरावरि की सहिये ना चहिये जायँ नदी पर प्रान ।। बातें सुनिक ये सय्यद की बीरा लीन कनौजी ज्वान चीरा खैये लाखनि राना