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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९५

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आल्हखण्ड। ४९४

विद्या पूरण सहदेऊ की कीरति रही जगतमें छाय ३
बड़ा प्रतापी रण मण्डल मा नकुलो समरधनी तलवार ।।
करण न होतो जो दुनिया मा तौ को होत दान वरियार ४
छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो पिथौरा क्यार ।।
नदी बेतवाके डाँडे़पर लाखनि करी खूब तलवार ५

अथ कथाप्रसंग ॥


आल्हा ठाकुर के तम्बू मा भारी लाग राज दरबार ।
त्यही समैया त्यहि औसर मा वोले उदयसिंह सरदार ?
घाट बयालिस पिरथी रोंके दादा करो कछु तदवीर ।।
इतना सुनिकै आल्हा बोले उदन धरो हृदय में धीर २
इतना कहिकै आल्हा ठाकुर तुरतै पान दीन धरवाय ॥
है कोउ योधा दूनों दल मा जो वितवा पर पान चबाय ३
इतना सुनिकै दोऊ दल के क्षत्री गये सनाकाखाय ।।
बोलि न आवा क्यहु क्षत्री ते सबहिन मूड़ लीन अउँधाय ४
ऊदन तड़पे त्यहि समया मा पहुँचे पाननिकट फिरिजाय ॥
आल्हा बोले तब ऊदन तै मानो कही लहुरवाभाय ५
अबती बारी है लाखनि के गाँजर फते कीन तुम जाय ॥
नदी बेतवा के मुर्चा पर जावैं अवशि कनौजीराय ६
मीराताल्हन धनुवाँ तेली बोले दोऊ शीश नवाय॥
तजी सम्पदा सव कनउज की आये लड़न कनौजीराय ७
नव दिन दश दिन भेगौने के सो तजिदई पदमिनी नारि ॥
बीरा खैये लाखनि राना करिये नदी भयानक रारि ८
बात बराबरि की सहिये ना चहिये जायँ नदी पर प्रान ।।
बातै सुनिकै ये सय्यद की बीरा लीन कनौजी ज्वान ९