पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३ नदीबेतवांकासमर । १६५ ऊदन बोले तब लाखनि ते हमरे वचन करो परमान ।। संग कनौजी हमहूं चलिबे करिबे घोर शोर घमसान १० मान न रखिये क्यहु क्षत्री के तुम्हरे संग कनौजी ज्वान॥ ऊंदन लाखनि के मुर्चा ते जैहैं लौटि वीर चौहान ११ इतना सुनिकै लाखनि बोले मानो उदयसिंह सरदार॥ रतीभान का मैं लड़काहूं नाती बेनचक्का क्यार १२ काह हकीकति हैं दिल्लीपति जो तुम चलो संगमें ज्वान॥ भूरी हथिनी 'कछु बूढ़ी ना ना कछु प्रसारोग बलवान १३ संग न लेवे हम काहू को आल्हा वचन करव परमान ॥ इतना कहिकै लाखनि ठाकुर नदी हेतु कीन प्रस्थान १४ धनुवाँ तेली मीरा सय्यद येऊ भये साथ तय्यार ।। नदी बेतवा के पाँजर मा पहुँचा कनउजका सरदार १५ नौसे हाथी लखरानाके पानी पियनगये त्यहिकाल॥ पार उतरिगे ते नदी के सहिनहिंसकेघाम बिकराल १६ तव हरिकारा पृथीराज का चौड़े खबरि जनाई जाय॥ बहुतक हाथी पार आयगे मानों कही चौडियाराय १७ इतना सुनिकै चौड़ा बाम्हन अपनो हाथी लीन मँगाय॥ चढ़ा तड़ाका फिरि हाथीपर नही उपर पहूँचा आय १८ सवियाँ हथिनी लखराना की चौंडातुरत लीन खिदवाय॥ भगे महाउत सब तहँना ते आये जहाँ कनौजीराय १६ हाल वताइनि सव हाथिनका ज्यहिविधिचौंड़ालीनखिदाय ॥ सुनि संदेशा लाखनिराना डंका तुरत दीन बजवाय २० भारी लश्कर लखराना का गर्जति चला. समरको जाय । घरी मुहूरत के अरसा मा पहुँचे समरभूमि में आय २१,