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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९६

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नदीबेतवाकासमर । ४९५

ऊदन बोले तब लाखनि ते हमरे वचन करो परमान ।।
संग कनौजी हमहूं चलिबे करिबे घोर शोर घमसान १०
मान न रखिबे क्यहु क्षत्री के तुम्हरे संग कनौजी ज्वान॥
ऊदन लाखनि के मुर्चाते जैहैं लौटि वीर चौहान ११
इतना सुनिकै लाखनि बोले मानो उदयसिंह सरदार॥
रतीभान का मैं लड़काहूं नाती बेनचक्कवै क्यार १२
काह हकीकति हैं दिल्लीपति जो तुम चलो संगमें ज्वान॥
भूरी हथिनी कछु बूढ़ी ना ना कछु ग्रसारोग बलवान १३
संग न लेवे हम काहू को आल्हा वचन करब परमान ॥
इतना कहिकै लाखनि ठाकुर नद्दी हेतु कीन प्रस्थान १४
धनुवाँ तेली मीरा सय्यद येऊ भये साथ तय्यार ।।
नदी बेतवा के पाँजर मा पहुँचा कनउजका सरदार १५
नौसै हाथी लखरानाके पानी पियनगये त्यहिकाल॥
पार उतरिगे ते नद्दी के सहिनहिंसकेघाम बिकराल १६
तब हरिकारा पृथीराज का चौड़े खबरि जनाई जाय॥
बहुतक हाथी पार आयगे मानों कही चौड़ियाराय १७
इतना सुनिकै चौड़ा बाम्हन अपनो हाथी लीन मँगाय॥
चढ़ा तड़ाका फिरि हाथीपर नद्दी उपर पहूँचा आय १८
सवियाँ हथिनी लखराना की चौंड़ातुरत लीन खिदवाय॥
भगे महाउत सब तहँना ते आये जहाँ कनौजीराय १९
हाल बताइनि सब हाथिनका ज्यहिबिधिचौंड़ालीनखिदाय ॥
सुनि संदेशा लाखनिराना डंका तुरत दीन बजवाय २०
भारी लश्कर लखराना का गर्जति चला समरको जाय ।
घरी मुहूरत के अरसा मा पहुँचे समरभूमि में आय २१