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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९८

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नदीवेतवाकासमर । ४९७

चढ़ा पिथौरा सातलाख सों सबियाँ घाट दये रुकवाय ॥
जो तुम लड़िहो ह्वै चाकरसँग तौ रजपूती धर्म नशाय ३४
इतना सुनिकै लाखनि बोले चौंड़ा काहगये बौराय ॥
किरिया कीन्ही हम गंगा में चलिबे साथ बनाफरराय ३५
पाँउँ पिछारी का डरिबे ना चहु तन धजी धजी उड़िजाय।
चुवै निशाकर ते आगी चहु औनभमिलै धरणिमेंआय ३६
उवै दिवाकर चहु पश्चिमको सातों सूखि समुन्दर जायँ ।
लाखनि भागै नहिं नदियाते चौंड़ा साँच दीन बतलाय ३७
इतना सुनिकै जरा चौंड़िया तुरतै दीन्ही ढाल चलाय ।।
होउ बहादुर जो लखराना हमरी ढाललेउ उठवाय ३८
लाखनि बोले तब धनुवाँ ते लावो ढाल यार यहिबार ।।
दावि बछेड़ा धनुवाँ चलिभा धाँधू कहा बचन ललकार ३९
पाँउँ अगाड़ी को डारे ना नहिं मुहँ धाँसि देउँ तलवार ।।
वात न मानी कछु धाँधू की धनुवाँ घोड़े का असवार ४०
भाला धमका धाँधू ठाकुर धनुवाँ लैगा वार बचाय ।।
ढाल उठाई जब धनुवाँ ने स्यावसिकह्यो कनौजीराय ४१
लीन कटारी लाखनि राना औ रेतीमा दीन चलाय ।।
होय बहादुर जो दिल्ली को सो अब लेय कटार उठाय ४२
इतना सुनिकै भूरा चलिभा सय्यद उठा तड़ाका धाय ।।
तब ललकारा वहि भूराने सय्यद खबरदार ह्वैजाय ४३
कहा न माना कछु भूरा का सय्यद लीन कटार उठाय ॥
सो दैदीन्ही लखराना का चौंड़ा बहुत गयो शरमाय४४
झुके सिपाही दुहुँ तरफा के फिरितहँचलनलागि तलवार ।।
पैदल पैदल के बरणी भै औअसवार साथ असवार १५