पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/४९८

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नदीवेतवाकासमर । ४६७ चढ़ा पिथौरा सातलाख सों सबियाँ घाट दये रुकवाय ॥ जो तुम लडिहो है चाकरसँग तो रजपूती धर्म नशाय ३४ इतना सुनिके लाखनि बोले चौड़ा काहगये बौराय ॥ किरिया कीन्ही हम गंगा में चलिबे साथ बनाफरराय ३५ पाउँ पिछारी का डरिखे ना चहुतन धजीधजी उडिजाय। चुवै निशाकर ते आगी चहु औनभमिले धरणिमेंआय ३६ उवै दिवाकर चहु पश्चिमको सातों सूखि समुन्दर जायें । लानि भागें नहिं नदियाते चौड़ा साँच दीन बतलाय ३७ इतना सुनिकै जरा चौड़िया तुरते दीन्ही ढाल चलाय ।। होउ वहादुर जो लखराना हमरी ढाललेउ उठवाय ३८ लाखनि बोले तब धनुवाँ ते लावो ढाल यार यहिबार ।। दावि बछेड़ा धनुवाँ चलिमा धाँधू कहा बचन ललकार ३६ पाउँ अगाड़ी को डारे ना नहिं मुहँ धाँसि देउँ तलवार ।। वात न मानी कछु धाँधू की धनुवाँ घोड़े का असवार ४० भाला धमका धाँधू गकुर धनुवाँ लैगा वार बचाय ।। ढाल उठाई जब धनुवाँ ने स्यावसिकह्यो कनौजीराय ४१ लीन कटारी लाखनि राना औ रेतीमा दीन चलाय ।। होय बहादुर जो दिल्ली को सो अब लेय कटार उठाय ४२ इतना सुनिकै भूरा चलिभा सय्यद उठा तडाका धाय ।। वव ललंकारा वहि भूराने सय्यद खबरदार हैजाय ४३ कहा न माना कछु भूरा का सय्यद लीन कटार उठाय ॥ सो देदीन्ही लखराना का चौड़ा बहुत गयो शरमाय४४ झुके सिपाही दुईं तरफा के फिरितइँचलनलागि तलवार ।। पैदल पैदल के वरणी भै औअसवार साय असवार १५