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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५०

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महोबेका प्रथमयुद्ध।

सवैया॥

सोय उठी परिमाल कि नारि तबै मनमें यह सोचन लागी।
मंदिर एक कसामसि होय नई दुलही सुलही बड़ भागी॥
दुःख मिलै इन नारिन को मन में यह सोचि उरै अनुरागी।
सोय उठे ललिते परिमाल तबै यह नारि सुनावन लागी ८१
सुनिकै परिमाल कह्योहँसिकै इनको हम आनहि ठौर टिकावैं।
उठिकै पुर दूर कछू यक जाय तहां पुरवा कर नेव डरावैं॥
नामधर्यो दशहरिपुर ताहि यहाँ दउकुँवरन फेरि बुलावैं।
ललिते द्वउबन्धु टिकेतहँजाय न गायसकों जोमहासुखपावैं ८२
को गति बरणै त्यहि पुरवा कै हमरे बूत कही ना जाय।
तहँही द्यावलि के आल्हा मे प्याट म रहे उदयसिंहराय ८३
बिरमा केरे मलखाने भे सुलखे गये गर्भ में आय॥
तबहीं करिया माड़ोवाला आधीरात पहूँचा आय ८४
सोवत मार्यो बच्छराज को काट्यो देशराज शिरजाय॥
आगि लगायो फिरि पुरवा में सबियाँ जेवर लीन मँगाय ८५
लीन्ह्यो हाथी देशराज का घोड़ा पपिहा लिह्यो खुलाय॥
लखा पतुरिया देशराज की सोऊ करिया लीन बुलाय ८६
मालखजाना परिमालिक का सबियाँ बेगि लीन लुटवाय॥
हार नौलखा को लैकै फिरि मोहबेते कूच दीन करवाय ८७
आठरोजकी मंजिल करिकै माड़ो गयो करिंगाराय॥
खबरि सुनाईती माहिलने सोऊ गयो तहाँ फिरि आय ८८
बड़ी बड़ाई भै माहिलकै राजा जम्बै के दरबार॥
अनँद बधैया माड़ो बाजी घरघरभये मंगलाचार ८९
ब्रह्मारंजित भे मल्हना के ओ द्यावलिके उदयसिंहराय॥