पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५०

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. महोवेका प्रथमयुद्ध । ४५. सर्वया ॥ सोय उठी परिमाल कि नारि तवै मनमें यह सोचन लागी। मंदिर एक कसामसि होय नई दुलही सुलही बड़ भागी॥ दुःख मिले इन नारिन को मन में यह सोचि उरै अनुरागी। सोय उठे ललिते परिमाल तबै यह नारि सुनावन लोगी ८१ मुनिकै परिमाल कह्योहँसिक इनको हम आनहि ठौर टिका । उठिकै पुर दूर कळू यक जाय तहां पुरवा कर नेव डरावें ॥ नामधरयो दशहरिपुर ताहि यहाँ दउकुँवरन फेरि बुलावें। ललिते दउबन्धु टिकेतहँजाय न गायसकों जोमहासुखपाकर को गति बरणै त्यहि पुरवा के हमरे बूत कही ना जाय। तहँही द्यावलि के आल्हा मे प्याट म रहे उदयसिंहराय ८३ बिरमा केरे मलखाने में सुलखे गये गर्भ में आय ।। तवहीं करिया माडोवाला आधीरात. पहूँचा आय ८४ सोवत मारयो बच्छराज को काट्यो देशराज शिरजाय ।। आगि लगायो फिरि पुरवा में सबियाँ जेवर लीन मँगाय ८५ लीन्यो हाथी देशराज का घोड़ा पपिहा लिह्यो खुलाय ॥ लखा पतुरिया देशराज की सोऊ करिया लीन बुलाय ८६ मालखजाना परिमालिक का सबियाँ बेगि लीन लुटवाय ॥ हार नौलखा को लेकै फिरि मोहबेते कूच दीन करवाय ८७ आठरोजकी मंजिल करिक माड़ो गयो करिंगाराय ।। खबरि सुनाईती माहिलने सोऊगयोतहाँ फिरि आय ८८ बड़ी बड़ाई में माहिलकै राजा जम्बै के दरवार ॥ अनँद बधैया माडो बाजी घरघरभये मंगलाचार ८६ ब्रह्मारंजित भे मल्हना के ओ द्यावलिके उदयसिंहराय॥