तीनि सै हाथी के हलका मा अकसर परे कनौजीराय ।।
देखन लागे चौगिर्दा ते कोउनहिंअपनपरैदिखराय ९४
जितने आये चढि कनउज ते ते सब हटे समर ते भाय॥
मीरा सय्यद धनुवाँ तेली दूनों दीन्हेनि समर वराय ९५
सुफना बोला तब लाखनि ते मानो कही कनौजीराय ॥
सबदल हटिगाहै कनउज का इकले आप रहे मड़राय ९६
हुकुम जु पावें महराजा का हथिनी देवैं तुरत भगाय ।।
छुवै न पावैं दिल्ली वाले राजन साँच दीन बतलाय ९७
इतना सुनिकै लाखनि बोले सुफना काह गये बौराय ।।
कहान माना हम जयचँद का हटका मातु हमारी आय १८
अब जो भाग समर भूमि ते तो रजपूती धर्म नशाय ।।
अमर न देही रामचन्द्र कै नारहिगये कृष्ण यदुराय ९९
जो कोउ जनमाहै दुनिया मा निश्चय मरै एक दिन भाय ।।
जितने जावैं मरि दुनिया ते पैदा होयँ तड़ाका आय १००
यामें संशय कछु नाहीं है गीता पाठकीन अधिकाय ॥
सुनिकै बातैं लखराना की नीचे गयो महाउत आय १०१
फूल पियायो त्यहि भूरी को पक्का पौवा भाँग खवाय ।।
गोटा दीन्ह्यो इक अफीम का ऊपर चढ़ा तड़ाकाधाय १०२
बोला महाउत फिरि लाखनिते ओ महराज कनौजीराय ।।
चारों तरफा दल वादल सों क्यहिदिशिहथिनीदेयँबढ़ा1१०३
सुनी महाउत की बातैं जब बोले फेरि कनौजीराय ।।
ऐसी हाथी है पिरथी का भारी ध्वजा रहा फहराय १०४
चलो तड़ाका दिशि याही को सुफना साँच दीन बतलाय ॥
किरपा ह्वैहै नारायण की पैवे विजय समरमें भाय १०५
पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५०३
दिखावट
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
आल्हखण्ड। ५०२
