पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नदीवेतवाकासमर । ५०३ सुनिक बातें लखराना की सुफना हाथी दीन बढ़ाय । अकसर लाखनि के जियरेपर चहुँदिशिफौजरहीमड़राय१०६ साँकरि फेरै भूरीहथिनी सबदल हटत पछारीजाय ॥ मारत मारत लाखनिराना पहुँचे जहाँ पिथोराराय १०७ आदिभयंकर गज के भरी मस्तक हना तड़ाकाधाय ॥ आदिभयंकर पाछे हटिगा तव पहिचना पिथौराराय १०८ लेके माला. गल अपने सों सोलाखनिको दीन पहिराय ॥ जैसे लड़िका रतीभान के तैसे पूत कनौजीराय १०६ घाटि न जाने हम ताहरते ओ महराना बात वनाय ।। तुम अब आवो हमरे दलमा मोहवाशहर ले लुटवाय११० पारस पत्थर को तुम लीन्ह्यो लोहावत स्वान लैजाय ॥ कहा न मानो तुम ऊदन का घटिहा बंश बनाफरराय १११ खुनस जो मनिहैं तुमतेतनको कनउज शहर लेय लुटवाय ॥ बेनचक्कवे के नाती हौ चाकर साथ कनौजीराय ११२ तुम्हरी हीनी नीकि न लागै ताते साँच दीन बतलाय॥ निकै बातें पृथीराज की बोला फेरि कनौजीरायं ११३ दिक आयन ऊदन सँगमा ना अब घाटि करें महराज ।। पारस पत्थर के गिन्ती ना जो मिलिजायइन्द्रकोराज११४ उवहूँ लाखनि कहि बदलेंना ओ महराज पिथौराराय॥ बदला लेवे संयोगिनि का ताते गयन यहाँपर आय ११५ मुनिकै वात लखराना की माहिल बोला बचन उदार ॥ गही कमनियाँ अब हाथे सों राजा दिल्ली के सरदार ११६ डारि कमनियाँगल लाखनिके अवहीं कैदलेउ करवाय ।। बोटे मुखकी ई बातें ना जैसे रहै कनोजीराय ११७