पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

नदीबेतवाकासमर । ५०७ शंक नहीं निरशंक फिरै यहु बंक है ठाकुर ठीक वखाना। काह बखान करै ललिते गुणवान जहान यही हम जाना१५२ बड़ा प्रतापी रणमण्डल मा ठाकुर उदयसिंह सरदार ॥ बहु दलमारा पृथीराज का नदिया वही रक्तकी धार १५३ मारत मारत दल वादल के तव लखिपरे वीर चौहान ।। विषधर शायक इक हाथेमा इक लोहेकी गहे कमान १५४ तहँई दीख्यो लखराना को तब मन ठीक लीन ठहराय ।।। शब्द भेद शर हनै पिथौरा कैसे बचें कनौजीराय १५५ जो मस्जैिहैं लाखनि राना तो सब जैहें कामनशाय ॥ जो सुनि पहें तिलका रानी तो मरिजायँ जहरकोखाय१५६ . नहीं आसरा यह लाखनि का. जो अब धरै पछारी पाएँ। शूर शिरोमणि सबविधि साँचे हमरे मित्र कनौजीराय १५७ साम दाम अरु दण्ड भेद ये चारों अङ्ग नीतिके आयें ॥ इनसों लड़िके सज्जन क्षत्री पावें विजय समरमें जाय १५८ यह सोचिकै ऊदन क्षत्री आपन घोड़ दीन दौराय ।। जहँपर हाथी पृथीराज का ऊदन अटातड़ाका धाय १५६ हाथ जोरिक ऊदन बोले ओ महराज पिथौराराय॥ तुम्है मुनासिब यह नाहीं है जैसी करो समर में आय १६० ना चदि आये जयचंद राजा ना चढ़िअये रजापरिमाल ।। राजा राजा का रण सोहै मानो साँच बात नरपाल १६१ लड़िका लाखनि तुम्हरे आगे तिन पर कैसे गहौ कमान । बातें सुनिकै बघऊदन की रहिगा चुप्प साधि चौहान१६२ ऐंड़ लगावा फिरि बेंदुल के हौदा उपर पहूँचाजाय ।।