पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

भाल्हखण्ड । ४६ सुलखे पैदा भे विस्मा के ताकी खुशी कहीना जाय ६० देवा पैदाभा भीषम के ठाकुर मैनपुरी चौहान ।। सो भा साथी बघऊदन का मानों सुनो चित्तदै कान ६१ याविधि लड़िका इकठौरी है वाँधे छोटि छोटि तलवार । इटिटि ढालें सोहँ पीठि में शिरपर पगिया करें बहार ६२ छटि छटि कलँगीतिनपरसोहैं छोटी वैसनके सरदार॥ अटि टि घोड़न के चढ़वैया बड़ वड़ ठकुरन केर कुमार ६३ रोज शिकारन को जावें ते बाँधे गूरा और गुलेल । जुलफै सोहे तिन कुँवरन के जिनमाँ महकै अतरफुलेल ६४ आगे घोड़ा है आल्हा को पाले जायँ वीर मलखान ।। तिनके पीछे ब्रह्मा सोहँ पीछे उदयसिंह बलवान ६५ सुलखे भाई 'मलखाने का सोऊ लीन्हे हाँथ गुल्याल । हिरना हूँ सब जंगल माँ एक ते एक दई के लाल ६६ हिरना पायो नहिं जंगल में लौटे फेरि महोवे बाल।। एक न लौट्यो उदयसिंह तहँ नाहर देशराजका लाल ६७ सो यह सोचै मन अपनेमाँ औ मनहीमाँ करै विचार ।। हम कहिओये हैं माता सों माता लावें आज शिकार ६८ हिरना मारे बिन जावे ना हमरो याही ठीक विचार ।। यह सोचि के मन अपने माँ ढूंढन लाग्यो तहाँ शिकार ६६ हिरनादीख्यो इक झावर में मारन चल्यो वनाफरराय ।। हिरना भाग्यो तहँ उरईको माहिल बाग पहूँचा जाय १०० घोड़ दुला को रपटाये पाछे चला बनाफर जाय॥ खाँई ऊंची त्यहि बगियाकी ऊदन घोड़ा दीन फंदाय १०१ मारि चंदुला की टापन सों सबियाँ बगिया दीन खुदाय ।।