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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५१

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आल्हखण्ड। ४६

सुलखे पैदा भे बिरमा के ताकी खुशी कही ना जाय ९०
देवा पैदाभा भीषम के ठाकुर मैनपुरी चौहान॥
सो भा साथी बघऊदन का ज्वानों सुनो चित्तदै कान ९१
याबिधि लड़िका इकठौरी ह्वै बाँधे छोटि छोटि तलवार॥
छूटि छूटि ढालैं सोहैं पीठि में शिरपर पगिया करैं बहार ९२
छूटि छूटि कलँगी तिनपरसोहैं छोटी बैसनके सरदार॥
छूटि छूटि घोड़न के चढ़वैया बड़ बड़ ठकुरन केर कुमार ९३
रोज शिकारन को जावें ते बाँधे गूरा और गुलेल॥
जुलफै सोहैं तिन कुँवरन के जिनमाँ महकै अतरफुलेल ९४
आगे घोड़ा है आल्हा को पाले जायँ वीर मलखान॥
तिनके पीछे ब्रह्मा सोहैं पीछे उदयसिंह बलवान ९५
सुलखे भाई मलखाने का सोऊ लीन्हे हाँथ गुल्याल॥
हिरना हूँ सब जंगल माँ एक ते एक दई के लाल ९६
हिरना पायो नहिं जंगल में लौटे फेरि महोवे बाल॥
एक न लौट्यो उदयसिंह तहँ नाहर देशराजका लाल ९७
सो यह सोचै मन अपनेमाँ औ मनहीमाँ करै विचार॥
हम कहिओये हैं माता सों माता लावैं आज शिकार ९८
हिरना मारे बिन जावैं ना हमरो याही ठीक बिचार॥
यहै सोचि कै मन अपने माँ ढूंढन लाग्यो तहाँ शिकार ९९
हिरनादीख्यो इक झाबर में मारन चल्यो वनाफरराय॥
हिरना भाग्यो तहँ उरईको माहिल बाग पहूँचा जाय १००
घोड़ दुला को रपटाये पाछे चला बनाफर जाय॥
खाँई ऊंची त्यहि बगियाकी ऊदन घोड़ा दीन फँदाय १०१
मारि बेंदुला की टापन सों सबियाँ बगिया दीन खुदाय॥