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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५१३

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आल्हखण्ड। ५१२

 चारहु राजा गाँजर वाले बारहु कुँवर वनौधाकेर २११
इन के सँगमा लाखनि राना मल्हना द्वार पहूँचे आय ।।
कीनि आरती चन्द्रावलि तहँ भीतरगये कनौजीराय २१२
संग पतोहुन को लैकै फिरि द्यावलिगई तड़ाका धाय !!
आल्हा ऊदन इन्दल तीनों येऊ फेरि पहूँचेजाय २१३
बड़ी कसामसि भै महलन मा बैठे सबै महा सुखपाय ।।
बारहु रानी परिमालिक की मल्हनामहलगईसबआय २१४
बड़ी खुशाली भै मल्हना के फूले अङ्ग न सके समाय ।।
बेटी बोली चन्द्रावलि तब मानों सॉच लहुनवाभाय २१५
जबते छाँड्यो नगर मोहोबा जबते मरे वीर मलखान ।।
तबते ईजति ये ताके हैं लुच्चा दिल्ली के चौहान २१६
जोना अवतिउ ऊदन भैया पिरथी लूटि लेत करवाय ।।
धर्म रखैया सब मोहबे के युगयुगजियौबनाफरराय २१७
सुनिकै बातैं चन्द्रावलि की ऊदन कहा बहुत समुझाय।।
काहहकीकति थी पिरथी की मोहबा शहर लेत लुटवाय २१८
मिला भेंट करि सब काहुन सों सबहिन कूच दीन करवाय ।।
जहाॅ कचहरी परिमालिक की आल्हा सहित पहूँचेआय२१६
खातिर कीन्ह्यो परिमालिक ने बैठे तहाँ कनौजीराय ।।
राजा बोले तब आल्हा ते हमपरदया दीन विसराय २२०
जवै बनाफर तुम मोहबेगे तबहीं चढ़ा पिथौराराय ।।
जूझिग ठाकुर सिरसावाला विपदा गई मोहोबे आय २२१
इतना सुनिकै आल्हा बोले मानों साँच बचन महराज ॥
सुनी तलाकैं जब तुम्हरी हम मानो गिरीं उपरते गाज २२२
माहिल भूपतिकी चुगुली सुनि हमरी देश निकासी कीन ।।