पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५१८

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अथ आल्हखण्ड॥ ठाकुरउदयसिंहजीकाहरणवर्णन ॥ सवैया॥ वज्रसे अंग ओ बानर हय अरु बीरन में बलवान महा। रणमण्डल कोउ न जाय सकै ज्यहि ठौर जबै यहु बीर रहा ॥ सप्त समुन्दर नाँघि अगाध दशकन्धर को पुर जाय दहा। आयहु फेरि जवै ललिते रघुनाथ ते साँच हवाल कहा ? सुमिरन ॥ तुम्हें वहादुर में ध्यावत हौं अञ्जनि पूत वीर हनुमान ॥ तुम्हीं गोसइयाँ दीनबन्धु हौ नितप्रतिकरों चरणकोध्यान १ सरवरि तुम्हरी का दुनिया मा दूसर कौन बहादुर ज्वान ।। शरण तुम्हारी मा आयन है साँचे वीर बली हनुमान २ गदा प्रहारी हे असुरारी मारी दुष्ट लङ्गिनी नारि ॥ पर्शत पॉयन मकरी तरिगे लायो पर्वत शृंग उखारि ३ बड़े पियारे रघुनन्दन के वन्दन करों जोरि दोउ हाथ ।। भवत चन्दन धूप दीप सों पूजन करों मानसी नाथ ४