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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५१९

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आल्हखण्ड। ५१८

करो मनोरथ पूरण हमरे सबविधि माननीय हनुमान ॥
छूटि सुमिरनी गै हनुमत कै ऊदन हरण सुनो अव ज्वान ५

अथ कथाप्रसंग॥


एक समैया की बातैं हैं परिगै पर्व दशहरा आय ॥
सुनवाँ बोली तब ऊदन ते साँची सुनो बनाफरराय १
मोरि लालसा यह डोलति है मज्जन करों बिठूरै जाय ।
आयसु लैकै तुम दादा की देवर मोहिं देउ हनवाय २
यह मन भायगई ऊदन के आल्हा महल पहूँचे जाय ।।
हाथ जोरि अरु विनती करिकै बोला तहाँ लहुरवाभाय ३
सुनवाँ भौजी की इच्छा है हमको गंग देउ हनवाय ।।
आयसु पावैं जो दादा की तौ हम जायँ बिठूरै धाय ४
इतना सुनिकै आल्हा बोले मानों साँच लहुरवा भाय ॥
देश देश के राजा अइहैं करिहौ कलह-तहाँपर जाय ५
त्यहिते बैठो घर अपने मा ऊदन साँच दीन बतलाय ॥
पर्व दशहरा की फिरि अइहै औरे साल हनायो जाय ६
इतना सुनिकै ऊदन बोले दादा सुनो बनाफरराय ।।
पगिया हमरी कछु अरुझीना जो तहँ रारि मचैवे जाय ७
वाचा हारे हम भौजी ते तुमको गंग देव हनवाय ।।
मोहिं भरोसा है दादा को करिहौ पूर मनोरथ भाय ८
बातैं सुनिकै वघऊदन की दीन्ह्यो हुकुम बनाफरराय ॥
हुकुम पायकै ऊदन ठाकुर लीन्ही तुरत फौज सजवाय ९
सजी पालकी तहँ ठाढ़ी थीं सुनवॉ फुलवा भई सवार ।।
घोड़ बेंदुला का चढ़वैया औ जगनायक भयो तयार १०
सवालाख दल ऊदन लैकै तुरतै कूच दीन करवाय।।