पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२१

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है आल्ह खण्ड। ५२० डिब्या दीख्यो नहिं जेवर को सुनवाँ गई सनाकाखाय २३ तुरत बनीफर उदयसिंह को अपने पास लीन बुलवाय॥ कहि समुझावा तहँ ऊदन ते डिव्या नहीं परै दिखलाय २४ एक लाख का सब गहना है कैसी करें बनाफरराय ॥ डिब्बा भूलाहै विठूर मा मोको याद भयो यहँ आय २५ काह बतावों में देवर ते करिये कैसो कौन उपाय ॥ धीरज राखो अपने मनमा बोले वचन लहुखाभाय २६ तुस्त बुलायो जगनायक को औ सब हाल कह्यो समुझाय ॥ हम तो जावत हैं बिठूर को तुम अव कूचनाउ करवाय २७ यह मन भायगई जगना के ऊदन गये विठौ आय ।। कैयो दिनका धावा करिकै जगना अटा मोहोवे जाय २८ रहा न मेला कछु लौटेमा सिरकी पाल पर दिखराय ॥ तिनमा नटिनी औ नट ठहरे गे तिन पास वनाफरराय २६ सुभिया दीख्यो जव अदन का भै मन खुशी त अधिकाय ।। कहाँते आयो औ कह ही ठाकुर हाल देउ बतलाय ३० सुनिकै बातें ये सुभिया की वाले फेरि बनाफरराय ।। नगर मोहोवा के हम ठाकुर आयन आजु विठूर नहाय ३१ जब तुम नाचन गइ तम्बूमा गहनो गयो हमार हिराय ।। पतालगावन त्यहि आयन है तुमते साँच दीन, बतलाय ३२ इतना सुनिकै सुभिया बोली मानो साँच बनाफरराय ।। पंसासारी हमते खेलो हम फिरि पतादेवलगवाय ३३ खेल पसारा सुभिया बेडिनि बैठे तहाँ लहुरवाभाय ।। जुआँ युद्धसों साँचे क्षत्री कबहुँ न धरै पछारी पॉय ३४ नल औ पुष्कल आगे खेल्यो झल्योदुःख नृपति अधिकाय ।।