सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
उदयसिंह का हरण । ५२१

भारी गाथा नलराजा की देखो महाभार्त में जाय ३५
द्वापर शकुनी के सँग खेल्यो कुन्ती पुत्र युधिष्ठिरराय ॥
हारि द्रौपदी महराजा गे खैंचा चीर दुशासन आय ३६
मानिकै शासन दुर्योधन का पहुँचे वनोवास फिरिजाय ।।
काटिकै संकट महराजा सब कीन्हेनिमहाभार्तफिरिआय३७
यहु दुखदाई पंसासारी खेलन लागि बनाफरराय ।।
जादू डारी सुभिया बेड़िनि भे तब सुबा लहुरखाभाय ३८
डारिकै पिंजरा मा ऊदन का सुभिया कूच दीन करवाय ।।
जायकै‌ पहुँची फिरि दिल्ली मा जहँ पर बसैं पिथौराराय ३९
जहाँ कचहरी दिल्लीपति की सुभिया गई यतन सों धाय ॥
करी बन्दगी महराजा को दोऊ हाथ जोरि शिरनाय ४०
सुभिया बोली फिरि पिरथी ते राजन साँच देयँ बतलाय ।।
डारिकै जादू हम ऊदन पर औ मेला ते लई चुराय ४१
पै डर हमरे है आल्हा का स्वामी जगा देउ बतलाय ।।
डारिकै सिरकी हम दिल्ली मा निर्भय बसी पिथौराराय ४२
इतना सुनिकै पिरथी बोले सुभिया कूच देउ करवाय ।।
जो सुनिपै हैं आल्हा ठाकुर हम ते रारि मचै हैं याय ४३
इतना सुनिकै सुभिया चलिभै डेरन फेरि पहूँची आय ।।
कूच करावा फिरि दिल्ली ते सब दरबार मँझावा जाय ४४
कहूँ ठिकाना जब लाग्योना झुन्नागढ़ै गयी तब धाय ॥
जहाँ कचहरी गजराजा की सुभिया तहाँ पहूँची जाय ४५
हाथ जोरि कै महराजा के आपन हाल दीन बतलाय ।।
जगा चाहती हम झुन्नागढ़ यह इककाज हमारो आय ४६
इतना सुनिकै राजा बोले सुभिया कूच जाउ करवाय ॥