पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२४

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उदयसिंहकाहरण । ५२३ वेश कैके पिंजरा प्रायन ताते छूटिगयो सब मान ५६ पढ़े फारसी हम विद्या ना अपनो धर्म करें प्रतिपाल । नित प्रति ध्यावै रघुनन्दन को पूरणब्रह्म सुरासुर पाल ६० खाल न रहै जो देहीमा केवल प्राण करें विश्राम ॥ तबहूँ मुख सों ऊदन ठाकुर कवन लेयँ खुदाको नाम ६१ निर्भय बातें सुनि ऊदन की वरगद डार दीन ढंगवाय ।। बहुतक बाँसन हनि हनि मारा ऊदन जपो खुदाय खुदाय ६२ सुनिकै बातें ये सुभिया की बोला फेरि बनाफरराय ॥ ऊदन ब्याहै नहिं बेड़िान को कबहूँ राम नाम विसराय ६३ वात न दूसरि हम अब कहिवे चहु तन धजीधजीउडिजाय ।। ऊदन ब्याह नहिं बेडिनि को कवहूँ राम नाम विसराय ६४ सुनिक बातें उदयसिंह की तुरतै सुवना लीन बनाय ।। डारिक पिंजरामा ऊदन का टाँगा फेरि बरगदा आय ६५ देखि दुर्दशा यह ऊदन की सुनवॉ बार बार पछिताय । डारि मशान दियो सुनवाँ ने पाछे पिंजरा लीन उठाय ६६ लेकै पिंजरा कछु दूरी "मा सुनवाँ गई तड़ाका धाय । सुवना लैकै फिरि पिंजरा ते मानुष तुरतै दीन बनाय ६७ सुनवाँ बोली फिरि ऊदन ते क्यों नहिं देवर जपो खुदाय ॥ काहे विलमें तुम बेडिनि में नित प्रति सहौ बाँसके घाय६८ चलिये देवर अब मोहवे को तुम्हरी बार बार बलिजायँ ।। सुनिक बातें ये सुनवाँ की बोले फेरि बनाफर राय ६६ चोरी चौरा ना हम जैहैं तुमते साँच देय वतलाय ।। दादा आवे हमरी कैद लेय छुड़वाय ७० ऐसे ऊदन अब जैहैं ना नित प्रति सह बाँसके घाय ।। लेके फौजै