पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२५

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5 आल्हखण्ड । ५२४ सुवा बनावो अब मानुष ते टाँगो फेरि वरगदा नाय ७१ इतना सुनिक रानी सुनवाँ टाँगा फेरि बरगदा आय ॥ चील्ह रूप है उड़ि तहँनाते पहुंची फेरि मोहोवे जाय ७२ मानुपि द्वैक फिरि महलनमा इन्दल पून लीन बुलवाय ॥ कहि समुझावा सब इन्दल ते वप्पै खवरि जनावो जाय ७३ सुनिकै बातें ये माता की इन्दल पूत चला शिरनाय । जहाँ कचहरी है आल्हा के इन्दल पूत पहूँचा आय ७४ बड़े प्यार सों आल्हाठगकुर अपने पास लीन बैठाय ।। फिरि शिर सूंध्यो आल्हाठाकुर बोल्यो मधुवचनमुसुकाय ७५ काह लालसा है वचुवा के सो अब बेगि देउ बतलाय ॥ इतना सुनिक इन्दलठाकुर कहिगा यथातथ्य सब गाय ७६ सुनिकै पाल्हा बोलन लागे है यहु दुष्ट लहुरवा भाय ।। करकति छाती दुख सुनिकै अब त्यहिते कैद छुड़ावबजाय ७७ इतना कहिकै आल्हा ठाकुर डंका तुरत दीन बजवाय ।। सजिगालश्करफिरिआल्हाका तुरतै कूच दीनं करवाय ७८ बनिकै चिल्हिया सुनवाँ रानी आधे सरग रही मड़राय ॥ जाय बरगदा के फिरि पहुँची चुप्पे वैठि डारपै जाय ७६ डारि मशान दयो सुभियादल तुरते पिंजरा लीन उठाय ।। कळू दूरिचलि झारखण्ड ते का मन्त्र तहॉपर जाय ८० मानुप द्वैकै फिरि वघऊदन ठाढ़े भये शीश को नाय ।। तब समुझावा रानी सुनवाँ लश्करगयो तुम्हारो आय ८१ चील्हरूप है रानी सुनवाँ बैठी एकडार पै जाय ॥ तहने चलिकै ऊदन ठाकुर आगे मिले फौजमें आय ८२ जादू चौकी मुभिया वाली सबियाँ हाल कहा समुझाय ।।