सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१०
आल्हखण्ड । ५२६

को गति वरणै तहँ बेड़ियन कै उनतो भली मचाई रार ९५
इनहुन दुर्गति तिनकी कीन्ही कायर छोंडि भागि मैदान ।।
कटि कटि कल्ला गिरै बछेड़ा घैहा होयँ अनेकन ज्वान ९६
पाँचसै बेड़िया घायल ह्वैगे सब दल रहिगा एकहजार ।।
तीनसै क्षत्रिय मोहबेवाले जूझे समर तहाँ त्यहिबार ९७
रानी सुनवॉ सुभिया बेड़िनि जादुन करैं तहाँपर रार ॥
कोऊ काहूते कमती ना दोऊ जादुन में हुशियार ९८
बीरमहम्मद की पुरिया को सुभिया छाँड़ि दीन त्यहिबार ।।
नारसिंह की जादू लैकै सुनवाँ तजा तुरत ललकार ९९
चिल्हिया ह्वैकै सुनवाँ सुभिया दूनन खूब कीन मैदान ॥
लड़ते लड़ते दूनों चिल्हिया पहुँचीं जाय तुरत असमान १००
लड़ते लड़ते द्वउ ऊपर ते नीचे गिरीं तड़ाका आय ।।
बड़ी लड़ाई भै पंजन ते अद्भुत समर कहानाजाय १०१
जहाँ लड़ाई द्वउ चिल्हियन की इन्दल तहाँ पहूँचा आय ।।
सुनवाँ बोली तहँ इन्दल ते बेटा मूड़ देउ बगदाय १०२
इन्दल बोले तब सुनवाँ ते कैसे देवैं मूड़ गिराय ॥
जो हम मारैं यहि तिरिया को तौ रजपूती धर्मनशाय १०३
हाथ मेहरियन पर छाँडै़ ना कबहूँ बीर समर में आय ॥
कैसे मारैं हम तिरिया को माता सोचो और उपाय १०४
इतना सुनिकै सुनवाँ बोली बेटा जूरा लेउ उड़ाय ॥
बातैं सुनिकै ये सुनवाँ की जूरा काटि लीन त्यहिठायँ १०५
जीवन दान दीन सुभिया को सोऊ भागि तडाकाधाय ॥
जादू झूटी भइँ सुभिया की तबसो लागित हाँ पचिताय १०६
ऊदन देबाकी मारुन मा बेड़िया भागे खेत बराय ।।