पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२७

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आल्हखण्ड । ५२६ को गति वरण तहँ बेड़ियन के उनतो भली मचाई रार ६५ इनहुन दुर्गति तिनकी कीन्ही कायर छोडि भागि मैदान ।। कटि कटि कल्ला गिरै बछेड़ा पहा होय अनेकन ज्वान ६६ पाँचसे वेड़िया घायल द्वैगे सब दल रहिगा एकहजार ।। तीनसै क्षत्रिय मोहवेवाले जूझे समर तहाँ त्यहिवार ६७ रानी सुनवॉ सुभिया बेडिनि जादुन करें तहाँपर रार ॥ कोऊ काहूते कमती ना दोऊ जादुन में हुशियार ६८ बीरमहम्मद की पुरिया को सुमिया छाँड़ि दीन त्यहिवार । नारसिंह की जादू लेके सुनवाँ तजा तुरतललकार ९९ चिल्हिया द्वेकै सुनवाँ सुमिया दूनन खूब कीन मैदान॥ लड़ते लड़ते दूनों चिल्हिया पहुँचींजायतुरतअसमान १०० लड़ते लड़ते दउ ऊपर ते नीचे गिरी तड़ाका आय ।। बड़ी लड़ाई में पंजन ते अद्भुत समर कहानाजाय १०१ जहाँ लड़ाईदउ चिल्हियनकी इन्दल तहाँ पहूँचा आय ।। सुनवाँ बोली तहँ इन्दल ते बेटा मूड़ देउ बगदाय १०२ इन्दल बोले तब सुनवाँ ते कैसे देबें मूड़ गिराय ॥ जो हम मारे यहि तिरिया को तो रजपूती धर्मनशाय १०३ हाथ मेहरियन पर छाँडै ना कबहूँ वीर समर में माय ॥ कैसे मारें हम तिरिया को माता सोचो और उपाय १०४ इतना सुनिकै सुनवाँ बोली बेटा जूरा लेउ उड़ाय । ॥ वातें सुनिक ये सुनवाँ की जूरा काटि लीन त्यहिठाय१०५ जीवन दान दीन सुभियाको सोऊ भागि तडाकाधाय ॥ जादू भूटी भइँ सुभिया की तबसोलागितहाँपचिताय १०६ ऊदन बाकी मारुन मा वेड़िया भागे खेत बराय।।