बिदा मांगिकै फिरि आल्हासों राजा चढ़ा पालकी जाय ११९
गा महराजा झुन्नागढ़ मा तम्बुन स्वये बनाफरराय ।।
राति बसेरा करि झुन्नागढ़ भुरहीं कूच दीन करवाय १२०
कैयो दिनकी मैजलि करिकै मोहबे गये बनाफरराय ॥
सौसौ तोपैं दगी सलामी जब घर गये उदयसिंह राय १२१
को गति वरणै त्यहि समयाकै हमरे बून कही ना जाय ।।
ऊदन हरण पूर अब ह्वैगा ध्यावैं तुम्हैं शारदा माय १२२
कण्ठ में बैठो तुम महरानी भूले अक्षर देउ बताय ।।
आशिर्वाद देउॅ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १२३
रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १२४
माथ नवाबों पितु माता को जिनबल पूर कीन यह गाथ ॥
नहीं भरोसा निज सुजवल का स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ १२५
पूर तरंग यहाँ सों ह्वैगा सुमिरों तुम्है भवानीकन्त ॥
राम रमा मिलि दर्शन देवैं इच्छा यही मोरिभगवन्त१२६
इति श्री लखनऊ निवासि (सी,आई,ई) मुंशी नवल किशोरा त्मजवावू प्रयागना-
रायणजी की आज्ञानुसार उनाममदेशान्तर्गतपॅड़रीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भव
बुधकृपाशवन्मनु पं०ललितामसादकृतऊदनहरण
वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥
उदयसिंह का हरण समाप्त ।।
इति॥