पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५२९

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भाल्हखण्ड । ५२८ विदा मांगिक फिरि आल्हासों राजा चढ़ा पालकी जाय११६ गा महराजा मुन्नागढ़ मा तम्बुन स्वये बनाफरराय ।। राति बसेरा करि मुन्नागढ़ मुरही कूच दीन करवाय १२० कैयो दिनकी मैजलि करिके मोहवे गये वनाफरराय ॥ सौसौ तो दगी सलामी जवघरगयेउदयसिंहराय १२१ को गति वरपै त्यहि समयाकै हमरे बून कही ना जाय ।। ऊदनहरण पूर अब बैगा ध्यावे तुम्हें शारदा माय १२२ कण्ठ में बैठो तुम महरानी मुले अक्षर देउ वताय ।। आशिर्वाद देउँ मुंशीसुत जीवो प्रागनरायण भाय १२३ रहै समुन्दर में जबलों जल जबलों रहें चन्द औ सूर ।। मालिक ललिते के तबलों तुम यशसों रहौ सदा भरपूर १२४ माथ नवाबों पितु माता को जिनबल पूर कीन यह गाथ ॥ नहीं भरोसा निज सुजवल का स्वामी रामचन्द्र रघुनाथ १२५ पूर तरंग यहाँ सों द्वैगा सुमिरों तुम्हे भवानीकन्त ॥ राम रमा मिलि दर्शन देखें इच्छा यही मोरिभगवन्त१२६ इति श्रीलखनऊनिवासि (सी,आईई) मुंशीनवलकिशोरात्मजवावप्रयागना- रायणजीकीयाज्ञानुसारउनाममदेशान्तर्गतपॅडरीकलांनिवासिमिश्रवंशोद्भव बुधकपाशवन्मनु पं०ललितामसादकृतऊदनहरण वर्णनोनामप्रथमस्तरंगः ॥ उदयसिंहकाहरणसमाप्त इति॥