पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५३९

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आल्हखण्ड । ५३८ दुलहिनि बनिकै चौड़ा वकशी तुरते चढ़ा पालकी जाय । जहरबुझाई लीन कटारी सो सारी में धरी चुराय ६४ ताहर बैठे दल गंजन पर धाँधू हाथी पर असवार ॥ झीलमवखतर पहिरिसिपाहिन हाथ म लई हाल तलवार ६५ चली पालकी फिरि चौड़ा की लश्कर कूच दीन करवाय॥ इक हरकारा ताहर पठयो औसवहाल दीनवतलाय ६६ खबरि जनावो तुम ब्रह्मा को बेला विदा लेय करवाय ।। आवत डोला है बेलाका इकले अवो घदेलेराय ६७ इतना सुनिकै धावन चलिभा । तम्बुन फेरि पहूंचा आय ।। खबार जनाई सब ब्रह्मा को जो कछ ताहर दीन बताय ६८ सुनिक बातें हरकारा की हरनागर पर भयो सवार ।। घरी अढ़ाई के अरसा मा पहुँचा मोहरे का सरदार ६६ आवत दीख्यो जब ब्रह्मा का ताहर बोले बचन उदार ।। आवो आचो ब्रह्मा ठाकुर तुमते हारिंगयी तलवार १०० डोला लाये हम वहिनी का ठाकुर विदालेउ करवाय॥ कौन दुसरिहा ह्याँ तुम्हरो है जो अब रारि मचावैआय१०१ लड़ि गिड़ि तुमने हम हारे सत्र तब यह ठीक लीन ठहराय॥ रंडा देहे जो वहिनी मम तो सब जैहैं काम नशाय १०२ यहै सोचिके महराजा ने डोला यहाँ दीन पवाय ।। बड़ी खुशाली में राजा के संग न अये बनाफरराय १०३ जो कहुँ औते ऊदन ठाकुर तो ह्याँ होत युद्ध अविकाय । बड़ी खुशाली भे राजा के जोतुमलीन्योपानछिनाय१०४ अब यह डेोला है बहिनी का मोहवे आपु देउ पठयाय ।। मुनि मुनि बचातें ये तार की बझा तुरत गये पतियाय १०५