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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५३९

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आल्हखण्ड । ५३८

दुलहिनि बनिकै चौड़ा वकशी तुरतै चढ़ा पालकी जाय ।
जहरबुझाई लीन कटारी सो सारी में धरी चुराय ९४
ताहर बैठै दल गंजन पर घाँघू हाथी पर असवार ॥
झीलमबखतर पहिरि सिपाहिन हाथ म लई ढाल तलवार ९५
चली पालकी फिरि चौड़ा की लश्कर कूच दीन करवाय ॥
इक हरकारा ताहर पठयो औ सब हाल दीन बतलाय ९६
खबरि जनावो तुम ब्रह्मा को बेला बिदा लेयँ करवाय ।।
आवत डोला है बेलाका इकले अवो चँदेलेराय ९७
इतना सुनिकै धावन चलिभा तम्बुन फेरि पहूंचा आय ।।
खबरि जनाई सब ब्रह्मा को जो कछु ताहर दीन बताय ९८
सुनिकै बातैं हरकारा की हरनागर पर भयो सवार ।।
घरी अढ़ाई के अरसा मा पहुँचा मोहबे का सरदार ९९
आवत दीख्यो जब ब्रह्मा का ताहर बोले बचन उदार ।।
आवो आवो ब्रह्मा ठाकुर तुमते हारिगयी तलवार १००
डोला लाये हम बहिनी का ठाकुर बिदा लेउ करवाय ॥
कौन दुसरिहा ह्याँ तुम्हरो है जो अब रारि मचावैआय १०१
लड़ि भिड़ि तुमते हम हारे सब तब यह ठीक लीन ठहराय॥
रंडा हैहै जो बहिनी मम तौ सब जैहैं काम नशाय १०२
यहै सोचिकेै महराजा ने डोला यहाँ दीन पठवाय ।।
बड़ी खुशाली भै राजा के संग न अये बनाफरराय १०३
जो कहुँ औते ऊदन ठाकुर तौ ह्याँ होत युद्ध अविकाय ।।
बड़ी खुशाली भै राजा के जो तुम लीन्ह्यो पानछिनाय १०४
अब यहु डेोला है बहिनी का मोहबे आपु देउ पठयाय ।।
सुनि सुनि बतैं ये ताहर की ब्रह्मा तुरत गये पतियाय १०५