पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अथ पाल्हखण्ड ॥ माड़ो का युद्ध वर्णन॥ सवैया॥ श्वेतस्वरूप अनूपमनूप नहीं कोउ रूप कहाँ ज्यहि गाई। आप समान हो आपहि रूप स्वरूप के भूप गिरीश जमाई ॥ बैल बुढ़ान कि शूल हिरानभयो कछु आन कि आनहि भाई। पापी लस्यो ललिते शरणागत लूटत हैं त्यहि चोर सदाई १ काम ो क्रोध औ लोभी मोहहु लूटत हैं नितही दुखदाई। राव न रंक कि शंक करें निरशंक फिरें सबके उर जाई ।। चार में मार अपार बली जो छली छलि देश गयो सब खाई। पापी लस्यो ललिते शरणागत लूटत हैं त्यहि चोर सदाई २ सुमिरन । नित प्रति ध्यावै जो सुर्यन को होवै जौन विसूरै काज ।। सूर्य महातम जो कउ गावै ताकी बनी रहै जग लाज ? प्रातःकाल उदय पूरब दिशि पश्चिम अस्त शामको जान॥ देय अंजली जल सुर्यन को तापर खुशी होय भगवान २ ।