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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५४१

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आल्ह खण्ड । ५५०

विपदा आई फिरि मोहोबे मा फैली बात महल में जाय ।।
सुनी हकीकति रानी मल्हना महलन गिरी मुर्च्छा खाय ११८
बारहु रानी चंदेले की रोवैं तहाँ पछाराखाय ।।
रय्यति रोवैं घर अपने मां सपने सरिस जगत दिखलाय ११९
साँचो स्वपना जग हम देखैं को उन पूत पतोहू भाय ॥
आज मरैं दिन दूसर काल्ही याही साँच परै दिखलाय १२०
त्यहिते भैया यहि दुनिया मा कबहुँन करैं उपरको शीश ॥
सम्मत हमरो यह साँचा है निनप्रतिम जैराम जगदीश १२१
सोउन बाचा यहि दुनिया मा बाहू गये जासु के बीश ।।
सहसन बाहुनका अर्ज्जुन भा ता काहना‌ अवशि जगदीश १२२
काह हकीकति नरपामर की जो करिलेय उपर को शीश ।।
रहिगा ठाकुर ना सिरसा का कलियुग वीर धीर अवनीश १२३
ताते चाही नर देही को झुकि २ झुकतर झुकि जाय।
त्यों त्यों त्यों त्यों ऊपर जावै ज्यों२शीश झुकावत जाय १२४
जैसे तरुवर है रसालको वौरन भार रहा गरुवाय ।।
ज्योज्यों बाढ़ै फल रसालके त्योंत्यों झुकत २झुकिजाय १२५
ज्योज्यों पकिपकि टपकता त्यो त्यो डार उपरको जाय ।।
ऐसो सम्मत यह साँचा है याँचा समय गयो नगच्याय १२६
नहीं तो आल्हाको थाल्हाकरि ललिते धर्म देत दिखलाय ॥
काह हकीकति नर पामर की जो अभिमान करतरहिजाय१२७
सुनी पाठ हैं जिन दुर्गा की स्त्रिन हना वीर समुदाय ॥
धर्म यथारथ की बातैं सब अबको स्वजन देय दिखलाय १२८
ताते गाथा यह सब छूटा लूटा दुःख मोहोबा आय ॥
खबरि पहुंचिगै दशहरिपुरखा आल्हानिकटतड़ाकाजाय १२९