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पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५४३

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आल्हखण्ड। ५४२

रहै समुन्दर में जब लों जल जब लों रहैं चन्द औ सूर ।।
मालिक ललितेके तबलों तुम यशसों रहौ सदाभरपूर १४२
माथ नवावों पितु माता को जिन बल पूरिभई यह गाथ ।।
करों तरंग यहाँ सों पूरण तब पद सुमिरि भवानीनाथ १४३
जो अभिलाषा मन हमरे है सो तुम पूरिकरो भगवन्त ॥
राम रमामिलि दर्शन देवैं इच्छा यही भवानीकन्त १४४

इति श्री लखनऊ निवासि (सी,आई,ई) मुंशीनवल किशोरात्मजवाबूप्रयागनारायण

जीकी आज्ञानुसार उन्नाम प्रदेशान्तर्गत पंडरीकलीनिवासि मिश्रवंशोद्भव

बुधकृपाशङ्कस्मनु पण्डित ललिता प्रसाद कृतबेलागौन आनयमेंठाकुर

ब्रह्मासिंहघायल वर्णनोनामप्रथमयुद्धेप्रथमस्तरंगः १ ॥

बेलाके गौने का प्रथम युद्ध समाप्त॥

इति ।