पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५४५

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आल्ह खण्ड । ५११ जटा के ऊपर सुरसरि सोहे तापर बैठ भुजग विकराल ।। श्वेत वरण तन भस्म रमाये धारे हृदय मुण्ड के माल ४ को गति बरणे शिवशङ्कर कै बटतर नित्त करें विशराम ॥ भांग धतूरन को भोजन करि ध्यानै नित्त रामको नाम ५ छूटि सुमिरनी गै देवन कै शाका सुनो शूरमन क्यार॥ चढ़ी कनौजी अब दिल्लीपर चढ़ि है उदयसिंह सरदार ६ अथ कथामसंग ॥ बेला बेठी निज महलन माँ मनमा धरे राम को ध्यान ।। कन्त जूझिगे रणखेतन मा फिरियहकरनलागिअनुमान ? नैनन आँसू द्वारन लागी पागी महादुःख भ्रमजाल ।। मुर्छा जागी जब चेला की चिट्ठीलिखनलागित्यहिकाल २ लिखी हकीकति यह ऊदनका बेटा देशराज के लाल ।। तुम्हें मुनासिब यह नाहीं थी जैसी कीन आप यहिकाल ३ वादा कीन्यो तुम व्याहे मा गौने विदा लेव करवाय ।। कन्त जूझिगे रण खेतन माँ अन्तौमिलनकठिनदिखराय ४ भये जनाना तुम द्यावलि के ऊदन वार वार धिक्कार ।। नालति तुम्हरी रजपूती का नाहक लेउ ढाल तलवार ५ होतिउ विटिया तुम द्यावलिके करतिउ बैठि महल शृङ्गार ।। शोच न होते तब बेला के ठाकुर उदयसिंह सरदार ६ होत जो बेटा बच्छराज का मकुर शूर वीर मलखान ।। तो का करतीं दिल्ली वाले दिल्ली रूप सबै चौहान ७ गिल्ली व है आल्हा ठाकुर दिल्ली देखि डरे यहिकाल ।। ऐसी पिल्ली हैं मोहवे मा तो का करें रजा परिमाल टिल टिल टिल्ली खलभरी ई लल्ली देशराज के लाल।