पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५४७

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आल्हखण्ड। ५४६ पाल्हा ऊदन मलखे सुलखे कलियुग धरमध्वजासरदार२१ इनकी कीरति अतिपवित्र है जो कोउ देखे हृदय उघार ॥ परम पवित्र चरित्र जिनके हैं तिनके नाम लेय संसार २२ यहतो ललिते के धनि बोले खोले और हाल यहिवार ॥ पाती लेके धावन चलिभा पहुँचा नगर मोहोबादार २३ विपदा छाई ह्याँ मोहवे में कोउन मसा सरिस भुन्नाय ।। यहि गति देखी द्वारपाल ने ठाढ़े लोग रहे सन्नाय २४ चुप्पे चलिभा दशहरिपुर का जहँ पर बैठि बनाफरराय ॥ पाती दीन्ही तहँ धावन ने अकुंर उदयसिंह को जाय २५ चुप्पे पाती ऊदन पढ़िके तुरतै डरी तड़ाकाफार ।। आल्हागकुर तव वोलत मे साँचे धर्मरूप अवतार २६ कहा कि पानी यह आई थी डारी जोनि तड़ाकाफार ।। वात सुनिक ये आल्हा की बोले उदयसिंह सरदार २७ अड़बड़ पाती थी वेला की गड़बड़ लिखी दुःखकेभार ।। जो नहिं जावं हम दिल्ली को वेला देय बहुत धिक्कार २८ आयसु पारें हम दादा को जावें युक्ति सहित यहिबार । जो नहिं जाबैं हम दिल्ली को हमरे जीवे को धिक्कार २६ मुनिक वात आल्हा वोले मानो कही लहुरवा भाय ॥ तुम नहिं जावो अब दिल्लीको चहु मरिजाय चंदेलाराय ३० दोप न देई कउ दुनिया मा ब्रह्मा लीन्ह्यो पान छिनाय ।। भवहीं भूले त्यहि बघऊदन कैसी कहै लहुस्खाभाय ३१ मुनिक बातें ये आल्हा की चोले उदयसिंह सरदार ।। धपियायो बालापन में मल्हना कीन बड़ा उपकार ३२ कैसे अवे हम दिखी ना दादा जियत मोहिं धिक्कार ।।