आल्हा ऊदन मलखे सुलखे कलियुग धरम ध्वजा सरदार २१
इनकी कीरति अतिपवित्र है जो कोउ देखै हृदय उघार ॥
परम पवित्र चरित्र जिनके हैं तिनके नाम लेय संसार २२
यहतो ललिते के ध्वनि बोलै खोलै और हाल यहिबार ॥
पाती लैकै धावन चलिभा पहुँचा नगर मोहोबा द्वार २३
बिपदा छाई ह्याँ मोहबे में कोउन मसा सरिस भुन्नाय ।।
यहि गति देखी द्वारपाल ने ठाढ़े लोग रहे सन्नाय २४
चुप्पे चलिभा दशहरिपुर का जहँ पर बैठि बनाफरराय ॥
पाती दीन्ही तहँ धावन ने ठाकुर उदयसिंह को जाय २५
चुप्पे पाती ऊदन पढ़िकै तुरतै डरी तड़ाकाफार ।।
आल्हाठाकुर तब बोलत भे साँचे धर्म्मरूप अवतार २६
कहाॅ कि पानी यह आई थी डारी जौनि तड़ाकाफार ।।
बातैं सुनिकै ये आल्हा की बोले उदयसिंह सरदार २७
अड़बड़ पाती थी बेला की गड़बड़ लिखी दुःख के भार ।।
जो नहिं जावं हम दिल्ली को बेला देय बहुत धिक्कार २८
आयसु पावैं हम दादा को जावैं युक्ति सहित यहिबार ।
जो नहिं जावैं हम दिल्ली को हमरे जीबे को धिक्कार २९
सुनिकै बातैं आल्हा बोले मानो कही लहुरवा भाय ॥
तुम नहिं जावो अब दिल्ली को चहु मरि जाय चँदेलाराय ३०
दोप न देई कउ दुनिया मा ब्रह्मा लीन्ह्यो पान छिनाय ।।
अबहीं भूले त्यहि बघऊदन कैसी कहै लहुरवा भाय ३१
सुनिकै बातैं ये आल्हा की बोले उदयसिंह सरदार ।।
दूधपियायो बालापन में मल्हना कीन बड़ा उपकार ३२
कैसे जैवे हम दिल्ली ना दादा जियत मोहिं धिक्कार ।।
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आल्हखण्ड। ५४६
