पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५४९

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आल्हखण्ड । ५४८ ६ चढ़ा बनाफर उदयसिंह जव हमरी लूट लीन करवाय ४५ तंगी आई जब हमरे घा तंब दरवार जुहारा भाय ।। महिना कमती कछु हैं ना तुमते साँच दीन बतलाय ४६ इतना सुनिकै चौंड़ा चलिभा आयो जहाँ पिथौराराय ।। खबरि गँजरिहन की बतलाई चौंड़ा वार वार समुझाय ४७ खबरिपायकै पिरथी वोले मानो कही चौड़ियाराय ।। कहाँ खजाना घर इतना है देवै तीस लाख जो भाय ४८ पारस पत्थर चन्देले घर तिनकी करें नौकरी जाय ।। म्वहिं अभिलाषा नहिं नौकरकी देवै तीस लाख जो भाय ४६ इतना सुनिकै चौंड़ा बोला मानो कही पिथौराराय ।। बड़े लडैया गाँजर वाले मोहवा आपु लेउ लुटवाय ५० दश औं पन्दा दिन नौकरकरि करिये काज पिथौराराय ।। फिरि मन भावै महराजा के दीजै सब के नाम कटाय ५१ यह मन भायी पृथीराज के तुरतै हुकुम दीन फरमाय ॥ हुकुम पिथौरा को पावत खन हिरसिंहविरसिंहलीनवुलाय५२ लाखनि ऊदन दोऊ आये चेहरा अपन दीन लिखवाय ॥ कीन नौकरी घर पिरथी के क्षत्री गये शहर में आय ५३ हुकुम लागिगा यह पिरथीका हाथी घोड़ा देउ दगाय ।। सुनिकै वार्तं महराजा की लाखनिवहुतदीनसमुझाय५४ लिखी न हिंसा कहुँ बेदन में गीता पाठ कीन अधिकाय ।। विनय हमारी यह राजन है यहु मंसूख हुकुम लैजाय ५५ नहीं फायदा कछु याते है ओ महराज पिथौराराय ॥ मुनिक वात ये लाखनि की खारिज हुकुम दीन करवाय५६ लानि ऊदन देवा सय्यद धनुवाँ यई पाँचहू जान ।। ।