पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आल्हखण्ड । ५० निमक न खावे जोरवि दिनमें एके वर कर आहार ॥ बंधन छूटें त्यहि दुनिया के नांधै माया सिंधु अपार ३ सोय के जागै जब कोऊ नर लेवे रोज मूर्य के नाम । जब मरजावे बहु दुनिया में पाये तुरत सूर्य को धाम ४ छुटि सुमिरनी में सूर्यन के ओं ऊदन का सुनो हवाल ॥ ऊदन जैहैं गढ़माड़ो को लडिहें तहाँ केर नरपाल ५ अथ कथामसंग ॥ बरस बारहीं का अदन रहे बाँधे सबै ज्वान हथियार ।। माहिल अकुर उरई वाला खेले ताकी वाग शिकार ? घोड़ बेंदुला तहँ थिरकत भा विषधर उरई के मैदान ।। भारी पनिघट रहै उरई का नारिन दीख सजीला ज्वान २ धीरज छूट्यो तब नारिन के वोली एक एक के कान ।। काहू राजाको बालकहै याको रूप दीन भगवान ३ नारी बोलें अस आपस में तबलग गयो बनाकर आय ।। ऊदन बोल्यो पनिहारिन सों घोड़े पानी देउ पियाय ४ मुनिक वार्तं बघऊदन की बोली एक नारि रिसिप्राय ।। कौनदेश के रहवैया हो आपन नाम देव बतलाय ५ लौड़ी तुम्हरी हम आहिनना घोड़े पानी देय पियाय ।। माहिलराजा जो मुनि पैहैं लेहैं घोड़ा तुरत छिनाय ६ देश हमारो नगर मोहोवा आल्हा केर लहुस्वाभाय ।। वेटा आहिन देशराज के हमरो नाम उदयसिंहराय ७ यह कहि लीन्हों कर गुलेलको गुल्लन गगरी दीन गिराय ॥ जितनी गगरी रहँ पनिघटमाँ सवियाँ गुल्लन दीन नशायद पैड़ा मसक्यो रसवेंदुल के घोड़ा उड़ा हवा सम जाय ।।