बिरा धरावा गा गौने का रहिगा चार घरी लों पान ६९
कोऊ खावा जब बीरा ना ता मैं उठा शारदा ध्याय ।।
करसों हमरे बीरा लीन्ह्यो तुम्हरे कन्त चँदेलेराय ७०
माहिल भूपति तहँ मुसकाने हमरो मरण समय गो आय ॥
कछु नहिं बोले परिमालिक जी दादा हमरे उठे रिसाय ७१
कहा हमारो तुम मान्यो ना ऊदन गयो मोहोबे आय ।।
सवन चिरैया ना घर छोंड़ै नाबनिजरा बनिज को जाय ७२
तबै निकारयो परिमालिक जी दीन्ही बहुत तलाकै माय ।।
गे जगनायक जब लेने को तब नहिं अवै बनाफरराय ७३
बहु समुझाये ते आये ते लाखनिराना संग लिवाय ॥
भरी कचहरी परिमालिक की ब्रह्मा लीन्ह्यो पान छिनाय ७४
वासरि करिकै द्वासरि कीन्ही दूनों भाय गयन अलगाय ।।
दादा रोंका मोहिं अबतीखन तुम नहिं जाउ लहुरवाभाय ७५
वादा तुमते हम कीन्हा था तुम्हरी बिदा लेब करवाय ॥
गड़बड़ि चिट्ठी तुम अति लिखिकै धावन हाथ दीन पठवाय ७६
सो दिखलावा नहिं दादा को कण्ठै हाल दीन बतलाय ॥
दूध पियावा मल्हना रानी स्यावामोहिं बहुत दुलराय ७७
ब्याह हमारे मल्हना रानी कुँवना पाँच दीन लटकाय ॥
प्राण नेग दै मैं मल्हना को टारयों पैर तहाँ ते माय ७८
प्राण निछावरि तुमपर करिकै बिछुरे कन्त देब मिलवाय ।।
इतना सुनिकै बेला बोली यह नहि आश परि दिखलाय ७९
कुटुँब हमारो सब बैरी ह्वै हमको राँड़ दीन करवाय ।।
जियत पिथौरा औ ताहर के कैसे मिलब पियाको जाय ८०
प्रभुता ऐसी क्यहि क्षत्री मा प्रीतम मिलन देय करवाय ।।
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आल्हखण्ड । ५५०
