पृष्ठ:आल्हखण्ड.pdf/५५१

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C आल्हखण्ड । ५५० विरा धरावा गा गौने का रहिगा चार घरी लों पान १ कोऊ खावा जब वीरा ना ता में उठा शारदा ध्याय ।। करसों हमरे वीरा लीन्ह्यो तुम्हरे कन्त चंदेलेराय ७० माहिल भूपति तहँ मुसकाने हमरो मरण समय गो आय ॥ कछु नहिं बोले परिमालिकजी दादा हमरे उठे रिसाय ७१ कहा हमारो तुम मान्यो ना ऊदन गयो मोहोवे आय।। सवन चिरैया ना घर छोडे नावनिजरा बनिजकोजाय७२ तबै निकास्यो परिमालिकजी दीन्ही बहुत तलाकै माय ।। गे जगनायक जब लेने को तब नहिं अवै बनाफरराय ७३ बहु समुझाये ते आये ते लाखनिराना संग लिवाय॥ भरी कचहरी परिमालिक की ब्रह्मा लीन्यो पान बिनाय७४ वासरि करिके द्वासरि कीन्ही दूनों भाय गयन अलगाय।। दादा रोंका मोहिं अवतीखन तुमनहिंजाउलहुखाभाय७५ वादा तुमते हम कीन्हा था तुम्हरी विदा लेब करवाय ॥ गड़बड़िचिट्ठीतुमअतिलिखिक धावन हाथ दीन पठवाय ७६ सो दिखलावा नहिं दादा को कण्ठै हाल दीन बतलाय ॥ दूध पियावा मल्हना रानी स्यावामोहिं बहुत दुलराय ७७ व्याह हमारे मल्हना रानी कुँवना पाँच दीन लटकाय ॥ प्राण नेग दै मैं मल्हना को टारयों पैर तहाँ ते माय ७- प्राण निछावरि तुमपर करिके बिछुरे कन्त देव मिलवाय ।। इतना सुनिकै वेला बोली यहनहिवाशपरिदिखलाय७६ कुटुंब हमारो सव वैरी है हमको राँड़ दीन करवाय ।। जियत पिथौस औ ताहर के कैसे मिलब पियाको जाय ८० प्रभुता ऐसी क्यहि क्षत्री मा प्रीतम मिलन देय करताय ।।